पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/५०७

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{ ४६२ ) १०-सा बच्चे को मक्खन खिलाती है। २–मालिक नौकर को मिठाई खिलाता है। ३-अध्यापक छात्रों को विद्या पढ़ाते हैं। बचे को, नौकर को, छात्रों को; तीन नगइ ‘को' विभक्ति गौण कर्म में लगी है। मा, मालिक और अध्यापक प्रयोजक कर्ता हैं । बच्चा मक्खन खाता है, “मा’ को खाने से कोई मतलब नहीं । मक्खन बच्चे के पेट में जावा है। बच्चा ही असली कर्ता है, जो कि कर्म का जामा पहने है। क्रिया की प्रवृत्ति इसी ( असुली कर्ता ) के हित में है। इस लिए इस में को’ विभक्ति का प्रयोग, जो कि सम्प्रदान झारक में भी लगती है। मा का उद्योग बच्च के लिए है। इसी तरह दूसरे तथा तीसरे उदाहरणों में भी समझिए । यों ‘क’ विभक्ति ने क्रिया की प्रवृत्ति असली कर्ता के हित में सूचित की। परन्तु 'सो' विभक्ति का काम इस से हट कर है। जब क्रिया की प्रवृत्ति प्रयोजक कर्ता के हित में होती है; असली कर्ता को जब एक साधन मात्र बनना पड़ता है और क्रिया का फल दुसरा भोगता है, तब ( असली कर्ता में) ‘से' विभक्ति लगती है--- १-आप ने बिस्तर कुली से उठवाया २---मैं ने लड़के से कापी मैंगवाई ३–भा लड़की से रोटी बनवाती है भा लड़की से रोटी बनाती है, तो शिक्षण लाम लड़की को जरूर मिलती है; परन्तु यहाँ इस बारीकी में जाने की जरूरत नहीं है। मोटे तौर पर चो लड़की को क्रिया का जैसा प्रत्यक्ष फल प्राप्त नहीं । ‘मा लड़की को दवा पिलाती हैं' कहें, तो दवा का पीना लड़की के प्रत्यक्ष हित में जरूर है। | ऊपर को क्या से विभक्तियों का प्रयोग-भेद जो हम ने बताया, उस की स्थिति व्यापक है। वैसे अपवाद तो सभी नियमों के होते हैं।

  • से विभक्ति साधारण ( मूल ) द्विकर्मक क्रियाओं के भी गौण कर्म में

लगती है। लड़के ने मा से सब बातें पूछीं' । यहाँ ‘बातें मुख्य कार्म है। और 'भा' गौण ; ‘से विभक्ति के साथ । 'म से' में से देख कर कार- कान्तर न समझ लेना चाहिए। यह विभक्ति कर्ता, कर्म, करण, अपादान आदि कई कारकों में लगती है। यही स्थिति को’ की है।