पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/५०९

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( ४६४ ) लगता है। पूरब में धोती सुखाति है' बोलते हैं। यद्वाँ ‘सूख' से 'सुखा नामधातु है । इसी तरह ‘झुराति है' आदि । परन्तु वहीं धोती सूखति हैं। में ‘सूख' धातु है। ‘श्रो' तथा 'ए' के ह्रस्व रूप ‘अ’ और ‘इ” होते हैं। यही पद्धति संस्कृत मैं भी है-- १-बच्चा सोता है—मा बच्चे को सुलाती है। २–बच्चा फूल देखता हैमा बच्चे को फूल दिखती है। ‘सुलाती है। में ल’ का गम भी है। प्रेरणा में प्रायः य, ल, व अन्तःस्थित हो जाते हैं। 'अन्तःस्थ'(यानी ‘अन्तस्थ) हैं ही । संस्कृत में ‘पठति का ‘पाठयति' रूप देखिए; 'य' बीज में आ गया । हिन्दी में 'व' या 'ल' बीच में आ जाता है-*सुलाता है। मालिक नौकर से. पेड़ कटवाता है । ‘बिस्तर बँधवा दिया न’ ! कभी-कभी ‘ल' और 'ब' दोनो का साथ-साथ आगमन ( अगम' } हो जाता है---‘मैं कपड़े धोबी से नहीं धुलवाता, स्वयं घोता हूँ। परन्तु प्रेरणा को मूल प्रत्यय है--‘अ’। “पढ़’ मूल घातु से प्रेरणार्थक ‘श्रा' प्रत्यय और सवर्ण-दीर्घ ‘पढ़ा' उपघातु । पढ़+अ = ‘पढ़ा। ‘सु६ छात्र को पढ़ाता है’----‘गुरुः छात्रं पाठयति । संस्कृत में प्रथम ह्रस्व स्वर दीर्घ हो जाता है—पठति’---का ठयत्ति और हिन्दी में अन्त्य स्वर दीर्घ होता है-पढ़ता है' से ‘पढ़ाता है। उठता है। मूल क्रिया-राम विस्तार से उठता है। ‘उठाना प्रेरणा- "नौकर बिस्तर उठाता है। इस प्रेरणा को भी प्रेरणा-‘मालिक नौकर से बिस्तर उठवाता है। मूल क्रिया अकर्मक, प्रेरणा सकर्मक और द्वितीय प्रेरणा द्विकर्मक | ‘वाता है' में 'व' है। राम उठता है' में 'उठ' मूल धातु हैं, पर तुम्हारा बिस्तर दुपहर को उठता है' में उठा ( उठाना ) प्रेरणा का कर्मकर्तृक रूप ‘उठ' है । विस्तर स्वयं नहीं उठ सकता । ‘सुलाना में 'लू' का श्रागम ।। | "मूल धातु का प्रथम स्वर ह्रस्व और धातु तथा प्रेरणा-प्रत्यय (श्रा' ) के बीच ‘लु का आगम ‘सु ले आ–‘सुला' । “सो’ मूल धातु की ‘सुला उपधातु । इसी तरह ‘बाँध' भूल धातु की ‘बँधवा' उपधातु । प्रथम स्वर ह्रस्व