पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/५१०

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और 'बु का आगम-सुलाना-बँधवाना। देता हैं” से “दिलाता है।

  • बाँधता है-बैंधवाता है। एक स्वर वाली धातुओं में प्रायः ग्ल' का आगम

हो जाता है. १-पीता है-पिलाता है। २०–सोता है-सुलाता है। ३---देता है—दिलाता है । ४---सीता है--सिलाती हैं ५--वीता है--जिलाता है; मर ‘लेता है' का 'लिवाता है? रूम होता है; ‘दिलाता है' की तरह ‘लिलाता है' नहीं । लिलाता' तो तुत- लाहट सी जान पड़ती ! | हिन्दी की कई ‘बोलियों में ल’ की छह बू' होता हैं-'हमैं पानी का पियावत हौ'--इमें पानी क्या पिलाते हो ! भगवान् सबू झा जियाक्त है-- भगवान् सब को जिलाते हैं । कपड़ा सियाय देद--कपड़ा खिला दो। ‘जियत है’ ‘पियत है ‘सियत है इन की मूल क्रियाएँ हैं ।। 'लु' का अराम जहाँ होती है, प्रथम स्वर “इ” या “इ” होता है। यू के रूप प्रेरणा में छुलाना’ ‘छुअना' ये दो देखे जाते हैं। यानी ‘न्' का आराम वैकल्पिक । खाना' का खिलाना' रूप होता हैं। यानी झा को ( ‘अ’ की जगह ) “इ” ह्रस्व । परन्तु आता है' “जाता है' आदि के रूप प्रेरणा में बनते ही नहीं हैं। इस का कारण हैं । | भेजना' एक मूल क्रिया है; इस लिए 'जान' की प्रेरणा रूप नहीं बनता । नौकर जाता है-मालिक उसे भेजता है । इसी तरह ‘बुलाना हिन्दी की मूल क्रिया है; इस लिए श्रादा है' का प्रेरण-रूप भई बनता है लड़का आता है----म लड़के को बुलाती है । यह ‘बुलान' क्रिया "बोलन' का प्रेरणा-रूप नहीं है । “बोलना' और 'बुलाना' में कोई अर्थ -सामञ्जस्य नहीं । ‘बोलना' का कभी-कभी बुलवाना प्रेरणा-रूप अवश्य देखा जाता हैं-‘बस, चुप हो जाओ, मुझे ज्यादा न बुलवाओ । सिर दुख रहा हैं । ‘बुलाना मूल क्रिया या प्रेरण-रूप ‘बुलवाना अलग चीज है...जर माधव को तो बुलवोि । 'बोलमा' कः प्रेरणा-रूप प्रायः अकर्मक रहता है-'क्यों हमें अधिक बुलवाते हो !' 'अधिक क्रिया-विशेषण है। फ्रन्तु ‘बुलाना समक क्रिया का प्रेरणा-रूप द्भिकर्मक होता है--नौकर से तुम माधब को बुलव लो' । 'नौकर' गौण फर्म, ‘माघ' मुख्य कर्म ।