पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/५१३

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( ४६८ ) हैं। काशी में बैठ कर भी श्राप लिख सकते हैं-'जब औरंगजेब यहाँ पहुँचा' या ‘आ पहुँचा । 'गाड़ी पटना किस समय पहुँचाती है ? कहीं भी पूछ सकते हैं। पटना वाले कहें गे—वह गाड़ी यहाँ किस समय आती है ? पहुँचती है' भी कह सकते हैं। परन्तु पटना से कहीं बाहर बैठे हुए आप

  • पटना गाड़ी किस समय जाती हैं' नहीं बोलते; न आती है? यही कह सकते

हैं । इसी लिए ‘लमय-सारणी में पहुँच’ और ‘छूट' शब्द लिखे जाते हैं । सो, “पहुँच' गत्यर्थक होने पर भी एक विशेषता रखती है और प्रेरणा में भी इस के प्रयोग होते हैं-'गाड़ी कल सबेरे कलकत्ते पहुँचाए गी; पहुँचा देगी।' रहना' और रखना' पृथक-पृथक क्रियाएँ हैं। रखना' क्रिया के कारण ही रहना' के प्रेरणा-रूप नहीं होते ! ‘ख’ और ‘रह' में कुछ विकास- संबन्ध भी कदाचित् हो ! खिलाना' रूप प्रेरणा में खेलना (खेल) का भी होता है और सुकर्मक ( ख ) का भी और अकर्मक 'खिल’ को भी । परन्तु प्रयोग से स्पष्टता आ जाती है; कहीं भ्रम नहीं होता । ऐसे बहुत कम शब्द-प्रयोग हिन्दी में हैं।

  • दाई बच्चे को फल खिलाती है, खेल खिलाती है। ‘सूरज कमल खिलाता

है' काम चलता है । “विझसित करता हैं चलता है। स्पष्टता के लिए कमी- कभी 'खेल' के ‘ए’ को पूर्ण ह्रस्व ( 'इ' ) न कर के अद्ध ह्रस्व कुर के बोलते ई---‘बच्चों को खेला लाथ्रो'। यानी ‘ए’ का ऐसा उच्चारण जैसा कि खेति- हर' या 'चेहरा' के 'ए' को है। त्रिकर्मक क्रियाएँ अभी तफू कुई नगइ थही लिखा गया है कि प्रेरणा में कोई क्रिया अक- मंक नहीं रहती। मूल धातु की अकर्मक क्रिया यहाँ सकर्मक हो जाती है और सकर्मक बन जाती है द्विकर्मक } परन्तु प्रेरणा में त्रिकर्मक क्रिया भी होती है | असली फर्म तो एक ही रहता है; द्विकर्मक में भी और त्रिकर्मक में भी। अधिक संख्या नकली या गौण कर्मों की ।।

  • बच्चा दूध पीता है।

साधारण प्रयोग है--‘पीना' सकर्मक क्रिया है । दूध’ कर्म है । मा बच्चे को दूध पिलाती है।