पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/५१४

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प्रेरणा में असली कर्ता--जो दूध पी रहा है। बच्चा’ }---कर्भ कारक की तरह प्रयुक्त हुआ है; इस लिए द्विकर्मकता ।। मा नौकर से बच्चे को दूध पिलवाती है। प्रेरणा की प्रेरणा—दो प्रेरणाएँ । बच्चा { असली क ) तो गौण कुर्म है ही; मौकर' भी एक गौरा फर्म है । बच्चा दूध पीता है--- नौकर बच्चे की दूध पिलाता है—मा नौकर से बचे के दूध पिलवाती हैं । ‘भा' कृत (रक्क कृर्ता ) और इतर दोनो गौशुरु कर्म । “दूध मुख्य कुर्म है ही। इस तरह

  • त्रिकर्मक क्रिया हुई । इहाँ जिस “प्रेरणा का जिक्र है, वह साधारण क्रिया

की विधि-आज्ञा अादि की प्रेरणा से भिन्न है । ‘म, पुस्तक पढ़ो' यह मूल क्रिया है । अज्ञा-रूप प्रेरणा है। -राम, गोविन्द को पढ़ा” अझ प्रेरणात्मक ‘पढ़ा' धातु की आज्ञा-रूप प्रेरणा है । इसी लिए इस 'रया का नाम ‘अनेककर्तृक अच्छा । अकर्तृक ‘कपड़े सिल रहे हैं और अझक्क'-- ‘राम गोविन्द से कपड़े सिलवा रहा है।' अकर्तृक क्रियाएँ पीछे बताया गया कि क्रिया के असली छत के अतिरिक्त कभी कोई

  • योजक भी आ कर तो बन जाता है। जबर्दस्त का ठेगा दिर पर ! यह

बाहरी तत्त्व तो श्री कर कर्ता बन जाता हैं--कर्ता की ही तरह सब काम करता है और असुली कर्ता कर्म' तेरद्द रहने लगता है। मकान का असली मालिक किरायेदार की तरह रहने लगता है-ठेके पर मकान उठा कर । दूसरे किरायेदार ठेकेदार से मालिका जैसा बर्ताद रहे हैं---उसे हैं। मालिक समझने लगते हैं। सालिक यद्यपि “मालिक ही है; परन्तु उस का वैता रूप नहीं रहती | यही स्थिति प्रेरणा में असली फ की होती है । इस लिए उन क्रियाओं को हम ने ‘द्विकर्तृक' नाम दिया है। द्विकर्तृक क्रियाओं में जहाँ एक नया कर्ता बढ़ी, वह रूप में भी बिझास-विस्तार हुआ--- “पढ़ से पढ़ा' धातु ( या 'उपधातु ) बन गई । यह कर उस से एक- दम विपरीत है। यहाँ असल कर्ता भी दिखाई नहीं देता ! कोई भी क्रिया फत के बिना सम्भव नहीं ! कतई तो किसी क्रिया का होता ही है । मतलब केवल प्रयोग-अप्रयोग से है। अब कत का प्रयोग वाक्य में नहीं होता, तो अकर्तृक क्रिया' का क्षेत्र समझा जाता है। परन्तु क्रिया-पद की गति कैसे हो ? इस के लिए क्रिया तब फर्स, करण, अपादान तथा अधिकार आदि