पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/५१७

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( ४७२ ) नीचे कुछ सकर्मक क्रियाओं के त्रिधा रूप देखिए- १---यहाँ धोबी कपड़े धोता है--- साधारण था मूल क्रिया २–यहाँ मैं धोबी से कपड़े धुलवाता हूँ ( प्रेरणा )। ३--वहाँ कपड़े धुलते हैं-- अझर्तृक यानी “कर्मकर्तृक') एक तालिका लीजिए अकर्तृक क्रियाओं की--- भूल किया | अकतृक प्रयोग , प्ररणा-प्रयोग काटना कूटना फटाना--कटवाना दबना बुना दबानाद्बुवाना बॉधना बँधना बँधाना--बँधवाना देखना दिखना दिखाना-दिखलाना छिंदना छिदाना-छिदवाना छेदना ‘पेड़ दिख रहा है’ को ‘पैड़ दीख रही है' भी लिखते-बोलते हैं; परन्तु दिखता’ रूप ही व्याकरण-सम्मत है । ‘ए’ को सदः 'इ' ह्रस्व होता है- सिलना, छिदना आदि । 'दिखाई दे रहा है' को कोई भी दीखाई दे रहा है' नहीं बोलता-लिखता। दोनो जगह नियम एक ही है । ‘कटना’ बँधना' अकर्तुक प्रयोग हैं। करनेवाला तथा बाँधनेवाला लुप्त है। परन्तु- | निकलना, सँभलना, बिगड़ना जैसी क्रियाएँ अकर्तृक नहीं हैं। ये मूल क्रियाएँ हैं- १–मैं घर से निकलता हूँ। ३—वह अवसर पर खूब सँभलता है। ३–मालिक नौकर पर बिगड़ता है। यहाँ मैं' वह तथा लिङ्ग' कर्ता हैं निकलने के, सँभलने के और बिगड़ने के । ये मूलतः अकर्मक क्रियाएँ हैं। इन की प्रेरणा में निकालना- सँभालना रूप हौं गे | आप किसी को निकाल सकते हैं, किसी को सँभाल सकते हैं। परन्तु किसी को किसी पर बिगड़वा नहीं सकते। जब तक अपना