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( ४७३ ) क्रोध न भड़के, कोई बिगड़े गा नहीं। हाँ, उस का क्रोध आप भड़का सकते हैं। सो, बिगड़ने की प्रेरणा न हो यो । ‘बिगाड़ना' पृथक् क्रिया है- विरूपता लाना । ‘इसे ने चित्र बिगाड़ दिया। इस ने राम से बिगाड़ लिया या ‘बिगाढ़ कर लिया. अर्थात् राम से खटपट कर ली । बिगड़ तथा

  • बिगाड़' एक ही मूल की 'विकास'-रूप दो शाखाएँ हैं। फोड़ा दब गया?

में ‘दना' अकर्मक कर्तृवाच्य है। दवा से फोड़ा दब गया में दवा हेतु है। मैं फोड़े को दबाता हूँ' में दब' का प्रेरणा-रूप हैं । मैं राम से दबूत हूँ' में ‘दबने का लाक्षणिक प्रयोग है, कर्मवाच्य । 'राम मुझे दबाता है' में उसी ‘द' का प्रेरणा-रूप है और कर्तृवाच्य है। यानी “दाना प्रेरणा का ‘दबना ( लाक्षणिक ) कर्मवाच्य प्रयोग । 'उठना साधारण क्रिया है-- राम उठता है । अॉखों का उठनः लाक्षणुिक प्रयोग ! राम बच्चे को गोद उठाता है' में उठाता' रा-रूप है। साल उठ रया' में उठ कर्म- कर्तृक रूप है, ‘उठाने की । कोई उठाने वाला चाहिए, माल स्वयं नहीं उठ सकता । यानी मूल धातु उठ; उस की प्रेरी उठा---‘राम माल उठाता है। इस प्रेरणा का कर्मकर्तृक रूप-‘माह उठता है। राम सबेरे उठता है मैं उठता’ मूल धातु उठ' का रूप है और माल उठता हैं में ‘उठ' फर्म कर्तृक रूप है—उठाने' झा । यानी उठाना प्रेरणा का कर्म- कर्तृक रूप 'उठना' है, जब कि ‘माल उठता है । निष्कर्ष यह निकला कि मूल धातु का प्रेरणा-रूप दीर्घान्त हो जाता है-बच्चा उठता हैं---मा बच्चे को गोद उठाती है। इस प्रेरणा का काम कर्तृक प्रयोग करें गे, दो अन्य ‘अ’ ह्रस्व हो जाए गा-‘माले उठता हैं। यानी मूल धातु ‘उठ' और उस की प्रेरणा-धातु ‘उठा सकर्मक । “राम ले को उठाता है गोद में ।

  • बच्चा उठता है' मूल रूप । परन्तु माल उठता हैं' कम कर्तृक प्रयोग हैं -

‘उठाने का ।। ये इस तरह की बातें ध्यान देने से आ जाती हैं; पर साधारणतः इधर, ध्यान जाता नहीं हैं। भाषा-प्रयोग के लिए ऐसी जानकारी जरूरी भी नहीं है; पर विशेष जानकारी अलग चीज है । 'दबुना' की प्रेरणा ‘दबाना' है; पर ‘दाबना एक सकर्मक धातु पृथकू भी है। अकसक दब’ तथा सकर्मक “दाब' ये दो पृथक् धातु मानने में कोई हर्ज नहीं । संयुक्त क्रिया के भी कर्मकर्तृक प्रयोग होते हैं--- चिट्ठी भेजी गई