पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/५२०

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( ४७५ } ‘कलम’ बड़े पदार्थ है। 'तलवार' भी ऐसी ही चीज है । कर्ता है कोई लेखक तथा “शिवा जी' । वाक्य में 'शिवा जी' की उपस्थिति कता–रूप से नहीं है–संबन्ध मात्र प्रकट करने के लिय हैं। कर्ता का स्थान करण' ने ले लिया है, तब कृर्म क्रमाल’ और ‘सिर’ अनी जगह अपने ('कर्म के ) ही रूप में हैं। इसी लिए इस प्रकरण का नाम 'कर्म कर्तृक' न रख कर ‘अकर्तृक या ‘कर्मादिकर्तृक' हम ने रखा है। ऊरण की ही तरह कारण तथा हेतु ( ज्ञापक कारण ) आदि का भी कत की तरह प्रयोग होता है-- १-—इस घटना ने एक नया प्रश्न पैदा कर दिया है। २–धुआँ आग बतला रही है। घटना के कारण प्रश्न पैदा हो गया है; परन्तु इस कार' का कर्ता की तरह प्रयोग है । धुएँ से झाग मालूम देती हैं । धुआँ शारक कारण है । परन्तु उस का प्रयोग कर्ता की तरह है। बतलाना' क्रिया का कर्ता कोई जड़ पदार्य नहीं हो सकता । गौणु प्रयोग है ।। कभी-कभी प्रेरणा का भी अकठुक प्रयोग होता है । शिवा जी तलवार चलाते थे, तो हाहाकार मच जाता था । साधारण प्रेरा--प्रयोग है। इछ का अकर्तृक रूप-

  • शिवा जी की तलवार चलती थी, तो हाहाकार मच जाता था

कर्म ( तलवार ) का कर्ता की तरह प्रयोग है। तलवार अपने श्राप नहीं चल सकती। 'लड़का चलता हैं' ठीक । 'पार्यों से ऊरण ! ‘हवा चलता है' ठीक । सूर्य-चन्द्र भी चलते हैं । परन्तु तलवार स्वतः नहीं चलती हैं । “तेरा मुहँ चलता है, तो बन्द नहीं होता' अकर्ताको प्रयोग है। मुइँ चलाने से चलता है और बन्द करने से बन्द होता है। परन्तु कर्ता को निर्देश (कर्ता के रूप में नहीं है-संबन्ध-मात्र में हैं-'तेरा’ | इस लिए कर्म-कर्तृक प्रयोग । अपादान का भी प्रयोग कता की तरह होता है- १—उस को फोड़ा बह रहा हैं। २-आज कल कुला चल रहा है।