पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/५२१

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( ४७६ ) फोड़े से मवाद बहता है, जो शब्दशः उपात्त नहीं है-लुप्त है । उस की जगह अपादान ‘फोड़ा' ही ‘बहने' का कुर्ता बना दिया गया है । ऐसा बोलने की रूढ़ि है। इसी तरह कुप से पानी चल-निकल रहा है। परन्तु उस की अनुपस्थिति में अपादान “कुआ ही कर्ता की तरह प्रयुक्त--‘कुला चल रहा है।' नई दिल्ली ने युद्ध की विभीषिका टाल दी ।' ! मतलब है नई दिल्ली १ राजधानी ) के नेताओं से । यहाँ सकर्मक क्रिया अधिकरणकतृक है। अधिकरणकर्तृक अन्य क्रियाएँ भी इसी तरह होती हैं- | रास्ता चल रहा है—बटलोही सेर भर पकाती है । रास्ते में लोग चले रहे हैं । परन्तु अधिकरण को ही कर्ता की तरह बोल देते हैं--'रास्ता चल रहा है। इस बटलोही में सेर भर पकाया जा सकता है । ‘बटलोही पकाती है’ अधिकरण-कर्तृक प्रयोग । ये सब विभिन्न कारकों के लाक्षणिक प्रयोग हैं । दिग्दर्शन के लिए इतना पर्याप्त है । क्रियाओं के अर्थ भी लाक्षणिक-( लक्षण-प्राप्त ) होते हैं । अर्थात् मुख्य अर्थ छोड़ कर किसी लक्ष्ये अर्थ में क्रियाओं के प्रयोग होते हैं । उड्डु- यन-उड़ना-पंखो के सहारे ऊपर चलना। तोते पेड़ से उड़ गए । परन्तु ‘उड़ने का यह अर्थ उड़ा कर कहीं कोई दूसरा ही अर्थ लक्षित होता हैं- १-चोर माल ले कर उड़ गया २--तुम ने तो ऐसा मजमून उड़ाया कि क्या कहा जाए । ३-~-दोस्त, हम से भी उड़ते हो ! ४---यह सुन उस के होश उड़ गए ! ऐसे प्रयोग की व्याख्या करना और समझाना व्याकरण' का विषय नहीं है। यह सर्व साहित्यशास्त्र में समझाया जाता है कि लक्षण क्या है, कब होती है, क्यों होती है; इत्यादि। जहाँ तक कारकों के लाक्षणिक प्रयोग की बात है, व्याकरण का विषय की जा सकती है। अतृक प्रयोग सूत्र लाक्षणिक ही समझिए ।