पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/५२२

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तृतीय अध्याय

संयुक्त क्रियाएँ

संयुक्त क्रियाएँ प्रायः सभी भाषाओं में होती हैं, परन्तु हिन्दी में इन झी संख्या बहुत अधिक है । सम्पूर्ण भाषा संयुक्त क्रियाओं से परिपूर्ण है । साधा- रए ‘जाता है’ ‘गया है। गया था' आदि क्रियाएँ तो साधारणतः संयुक्त हैं ही; विशेष अर्थ प्रकट करने के लिए भी क्रियाएँ .अन्य क्रियाओं का सहयोग बहुत अधिक लेती हैं। ऐसा सहयोग लेना अनिवार्य है। इस अध्याय में ऐसी ही विशिष्ट संयुक्त-क्रियाओं का उल्लेख हो गः । संयुक्त क्रियाएँ दो रूर्षों में देखी जाती हैं---‘संश्लिष्ट' और 'विश्लिष्ट' । हिन्दी में विश्लिष्ट ही प्रायः सब क्रियाएँ हैं; एकाध संश्लिष्ट । संस्कृत में ‘न्तुम् इच्छति'--जाना चाहता है; बों विश्लिष्ट संयुक्त-क्रियाएँ खूब चलती हैं और जिगमिषति' जैसी संश्लिष्ट भी कम नहीं हैं। गम्' क्रिया “इष’ सहायक क्रिया से एकदम सुट गई है और फिर अपने रूप में कुछ परिवर्तन- परिवर्द्धन भी कर लिया है। जिमिषति आदि में ‘इषु धातु स्पष्टतः दिखाई देती हैं, जिसे आगे चल कर प्रत्यय मान द्धिया गया । हिन्दी में करना चाहता है’ ‘नाना चाहता है जैसे विश्लिष्ट हैं। प्रयोग होते हैं। केवल 'लेना' ('ले ) तथा 'ना' (‘’ ) क्रियाएँ संश्लिष्ट हो कर ‘लाना' रूप में प्रकट हो गई हैं और ऐसी संश्लिष्ट हुई कि सन् १९४४ तक किसी को कुछ पता ही न चला कि यह संयुक्त-क्रिया है । सन् १६६४३ में ‘ब्रजभाषा का व्याकरण प्रकाशित हुआ । उस में प्रथम बार हिन्दी के “वाय' स्पष्ट हुए। वहाँ नियम बना कर लिखा गया कि ( गत्यर्थक घालुओं को छोड़, शेष सभी ) सकर्मक धातु के साधारण प्रयोग भूतकाल में कर्मवाच्य या भाववाच्य होते है । परन्तु “लाना' क्रिया अपवाद में आई । यह भूत काल में भी कर्तृवाच्य रहती हैं---राम खीर लादा लड़की फल लाई'। वाच्य तो बहुत स्पष्ट हो गए; पर मथ में एक उलझन बनी रही ! यह प्लाना' क्रिया उस व्यापक नियम के अर्ध- वाद में कैसे आई ! हिन्दी जैसी वैज्ञानिक भाषा में अकारण कोई चीज हो