पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/५२३

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{ ४७८ ) नहीं सकती। कई वर्ष उलझन में बीते और फिर राम खीर ले आया “सीता दूध ले अई' जैसे संयुक्त क्रिया के रों पर ध्यान गया । संयुक्त क्रिया में अन्तिम क्रिया के अनुसार ‘वाच्य होते हैं। अना’ गत्यर्थक क्रिया है । सो,-'राम रोटी ले आया ठीक । साधारणतः राम ने रोदर ली' ।

  • लोना' क्रिया का कर्ता भूतकाल में ‘ने विभक्ति के बिना ही आता है:- ‘राम

रोटी लाया'। इन सब लक्षणों से स्पष्ट हो गया कि ‘लाना हिन्दी की संयुक्त-क्रिया है। यह बात समझ में आते ही ऐसी प्रसन्नता हुई, जैसी न्यूटन झो पृथ्वी में आकर्षण शक्ति स्नान कर हुई हो गी । अब तो यह साधारण चीज है। बच्चे भी जानते हैं । सो, ‘लाना' क्रिया संश्लिष्ट है। सम्भव है, एकाध और भी हो; ध्यान जाने की बात है। परन्तु विश्लिष्ट क्रियाएँ ही अधिक हैं और उन्हीं का उल्लेख यहाँ किया जाएगा । ‘किया जाए गा’ में ‘ज्ञाना' सहायक क्रिया है । करना मुख्य क्रिया है। सहायक क्रिया ने यहाँ अपना ‘अर्थ’ एकदम छोड़ दिया है। ले आए गाने में आना' क्रिया ने स्वार्थ नहीं छोड़ा है; फिर भी सन्धि हो कर वह एकात्मकता ! किया जाए गर' में “जाए गा' ने स्वार्थ छोड़ दिया है। फिर भी सन्धि-संश्लेष नहों ! ‘ले अाए गा’ को ‘लए गा’ रूप हो गया; पर कर श्राए गा' या 'देख अए गा' आदि में सन्धि-संश्लेष नहीं । एक जगह रूस और चीन जैसा सहयोग है—स्वार्थ छोड़े बिना एकात्मकता और दूसरी जगह ऐसा साहचर्य है, जैसा पिछले डेढ़ सौ वर्षों तक अंग्रेज झा हिन्दुस्तानी से रही । हिन्दुस्तानी ने असली स्वार्थ छोड़ दिया था--स्वार्थ भूल ही गया था ! और एकनिष्ठ हो कर अंग्रेज के साथ रहा ! परन्तु फिर भी दोनों पृथक् रहे ! वैसा सन्धि-संश्लेष नहीं ! दिखावे में अंग्रेज ने हिन्दुस्तानी को जरूर आगे किया; जैसे कि ‘किया जाए गा’ ‘किए जाएँ ' आदि में वाच्य-प्रदर्शन सहायक ‘जा' क्रिया में होता है । मतलब यह कि संयुक्त क्रियाओं में सहायक क्रिया कभी स्वार्थ एकदम छोड़ देती हैं। और कभी बनाए भी रखती हैं। नीचे कुछ उदाहरणों में सब स्पष्ट हो जाए या ।। | ‘जा' सहायक क्रिया झा' धातु प्रायः सभी धातुओं में सहायक रूप से लगती है और काल- प्रत्यय तथा वाच्य आदि इसी के द्वारा व्यक्त होते हैं; परन्तु मुख्य क्रिया में भी वह सब प्रायः उसी तरह होता है:-