पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/५२६

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  • कर' से 'त' प्रत्यय कतुवाच्य है; कभी भी कर्मवाच्य या भाववाच्य हैं,

हो गा ! भूतकाल का थ' कर धातु से कर्मणि या भावे होता है। | संस्कृत में 'य' ( यङ् प्रत्यय से जो बात प्रकट की जाती है, वहीं हिन्दी अपने इस भाववाच्य ‘य' प्रत्यय को मुख्य क्रिया में लगा कर प्रकट करती है--क्रिया की सातत्य या आधिक्य } सातत्य ही अधिक प्रकट होता है-- क्रिया को जारी रहना ] आधिक्य प्रकट करने के लिए तो बीच में ही अव्यय लानी पड़े गा- १–सीता अफल पाठ ही किया करती है २—तुम दिन मर जाते ही किया करते हो यानी कर्म के पहले ही लगने से मतलब निकल जाता है। अन्य काम करने का व्यवच्छेद । परन्तु अकर्मक क्रिया में- १——तुम तो सोया ही करते हो। २-इम श्रया ही जाया करते हैं श्राना-जाना' गत्यर्थक सकर्मक क्रियाएँ हैं; परन्तु यहाँ अकर्मक प्रयोग है। 'ही' बीच में आ गया है। हम आया-जाया ही करते हैं ऐसा भी बोलते हैं। सकर्मक ‘पढ़' का अकर्मक प्रयोग “तुम पढ़ते ही रहते हो ।' यदि क्रिया में अनेक स्वर हौं शौर वह हुस्व अकारान्त हो, तो भाववाच्य ‘यु' प्रत्यय को लोप हो जाता है और अवशिष्ट क्रिया-रूप भावाच्य ही . १-उषा वेद पढ़ा कुरती है। २०–मैं लेख लिखा करता हूँ ३-वे कहानी कहा करते थे । ४-तुम कपड़े बुना करो। ५—लड़के खेल खेला करे गे यदि क्रिया कारन्ति हो, तो ‘य' सामने रहता हैं, स नहीं होता ... १--- उषा वेद पढ़या करती है। २-मैं लड़के से लेख लिखाया करता हूँ