पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/५२७

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( ४८२ ) ३—तुम बुनकरों से कपड़े बुनाया करो कभी-कभी दो या तीन सहाथ क्रियाएँ भी आ जाती हैं और तब मुख्य क्रिया प्रकृत ( 'धातु ) रूप में रहती है। बीच की ( सहायक क्रिया ) में सातत्यबोधक ‘य' प्रत्यय लगता है--- १-उषा वेद भी पढ़ लिया करती है। २-- मैं कभी-कभी फल भी खा लिया करता हूँ। ३---तुम भी कभी कभी फल खा लिया करो प्रेरणा के रूप में उपधातु भी उसी तरह -- १--तुम राम से चिट्ठी लिखा लिया करो | ( लिखवा लिया करो ) २-इमें भी कुछ ऐढ़ा दिया करो . यो ‘लेना-देना सहायक क्रियाएँ स्वार्थ छोड़ कर आती हैं और क्रिया के सातत्य को उड़ा देती हैं। लिया करता है और ले लिया करता है' में बहुत अन्तर है। लिया करता है' में सातत्य है और ले लिया करता है? का मतलब यह कि कभी-कभी ले लेता है ! लेना-देना सहायक क्रियाएँ साधरणतः अपने, लिए क्रिया हो, तो लेना' और दूसरे के लिए हो, तो "देना सहायक क्रिया के रूप में आती है---‘मैं ने चिट्ठी लिख ली । मत- लब यह कि अपनी चिट्ठी । और 'मैं ने चिट्ठी लिख दी' यानी दूसरे की । इसी तरह- काम कर लिया--काम कर दिया गौ दुह ली–गौ दुह दी। तुम ने रोटी बना ली–तुम ने रोटी बना दी परन्तु “तुम ने रोटी खा दी’ कभी भी न हो गा । 'तुम ने खाया ले लिया' और 'तुम ने साग ले दिया' | ‘ले लिया अपने लिए और ले दिया दूसरे के लिए । 'स्वार्थ'–विघात में भी देना' का प्रयोग होता है-*मैं ने वह घोड़ा बेच दिया। घोड़े में कुछ कसर थी, या फिर बिका वह य ही ! पूरा स्वार्थसिद्धि में--‘एक हजार की तो उस ने कपास बेच ली और इतने ही की ज्वार भी बेच ली थी।