पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/५३

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की ओर ध्यान न जाएगा ! परन्तु इससे यह तो निष्कर्ष न निकलेगा कि इन प्रदेशों की अपनी प्राकृत भाषाएँ इस समय कोई है ही नहीं ! उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद से लेझर पंजाब के अंबाला जिले तक की लेबी पट्टी में जो प्रात बोली जाती थी, उसका नाम निर्देश भी नहीं किया गया है। इसी प्रदेश के सध्याग की तीसरी प्राकृत अपभ्रंश' से हिन्दी का प्रादुर्भाव हुआ, जो आज राष्ट्रभाषा है, हिन्द की भाषा है, तत्त्वतः हिन्दी हैं, जिस भाषा में ये पंक्तियाँ लिखी जा रही हैं। मागधी, सहाराष्ट्री, शौर- सेनी कृतों के नाम प्रादेशिका सूचित करते हैं। इनसे भिन्न एक नाम ऐसा मिलता है, जिसमें प्रादेशिकता की गान्ध नहीं है, वह है-नागर प्राकृत; नागर' ( शिष्ट ) जनों की भाषा । बहुत सम्भव है कि जिन देशों की प्राकृत के नाम नहीं लिए गए हैं, इहाँ सृहित्यिक भाषा के रूप में नागर प्राकृत' का चलन रहा हो । विभिन्न प्रादेशिक प्राकृत ने अपनी लिपियाँ भी अलग-अलग बना ली हौशी, किसी सामान्य रूप में कुछ भेद कर-कर के ! परन्तु ‘नागर प्राकृत था ‘नागरी भाषा’ किसी एक ही पूर्वागत लिपि में लिखी-पढ़ी जाती होगी । यई लिपि ‘ब्राह्मी लिपि का रूपान्तर ही समझिए । “ब्राह्मी’ बोलने में कुछ क्लिष्टता जान पड़ती है; इसलिए, आगे चलकर इस लिपि का नाम भी नारी पड़ गया होगा। रेलवे-स्टेशनों के नाम रोमन लिपि में देखकर आज भई, पढ़े लिखे लोग भी, कह देते हैं--- अंग्रेजी में लिखा है-भरतपुर ।' उत्तर-प्रदेश के मुरादाबाद से पश्चिम–मुजफ्फरनगर, सहारनपुर, मेरठ तथा देहरादून के जिले किसी समय ‘कुरुजनपद' कहलाते थे । कुरुजनपद के पड़ेस में ही शौरसेन प्रदेश है, जिसे आजकल ब्रज' हते हैं । ब्रज' में मथुरा, श्रा, अलीगढ़ अादे जिलों का भूभाग सम्मिलित हैं। शौरसेनी वहाँ की प्राकृत कहलाती थी । कुइजनपद की प्राकृत का दस कौरवी' होना चाहिए। परन्तु कोई नाम मिलता नहीं है। लोगों ने समझ लिया कि जिन कृर्ती के नाम मिलते हैं, वे ही उस समय थीं और बस ! समझ लिया गया कि “मागधी' ही बिहार में तथा बंगाल-उड़ीसा में बोली जाती थी ! परि- सदः यह भी लिख दिया गया कि मागधी के अपभ्रंश ( तीसरी प्राकृत ) से मगही, मैथिली, भोजपुरी, बँगला तथा उडिया भाषाएं बनीं ! इसी तरह शौरसेनी अपभ्रंश से हिन्दी (खड़ी बोली ) की भी उत्पत्ति मान ली गई ! यानी, शौरसेनी अपभ्रंश से ब्रजभाषा तथा खड़ी बोली' ( राष्ट्रभाषा ) का