पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/५३१

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३-एक अखबार लिया जाता है। ४---यहाँ जल पिलाया जाता है। मुख्य क्रिया में कर्मणि 'य' है और सहायक में ‘त' । थ' प्रत्यय यह भूतकाल का नहीं, काल-निरपेक्ष है । इसी लिए सब फालों में अन्वय हो जाता है। ऐसी अकतुक ( कर्मफतृक ) क्रियाओं में कर्ता जोड़ कर लोगों ने व्याकरण में समझाया है कि ये कर्मवाच्य प्रयोग हैं- राम से रोटी खाई जाती है। सीता से फल खाया जाता है। सो, यह भ्रम है। हिन्दी में ऐसे ( कत की उपस्थिति में ) कर्मवाचक प्रयोग होते ही नहीं हैं। मैं रोटी खाता हूँ की जगह कोई नहीं कहता कि ‘मुझ से रोटी खाई जाती है। हाँ, शक्ति-निषेध में जरूर बोला जाता है। (दाढ़ में इतना दर्द है कि ) मुझ से रोटी नहीं खायी जाती । परन्तु साधारण प्रयोग वैसे नहीं होते। शक्ति का विधान अपेक्षित हो, तब राम से वह काम हो जाएगा' कहा जाए गा और यह कर्मवाच्य है । किसी भी धातु के सभी कालों में रूप चलते हैं, जब जा’ सहायक रूप में आती है। ‘जा' धातु को भूतकाल में 'ग' आदेश हो जाता है---‘गया रूप बनता है। आज वह उठ गया !' कहने से मृत्यु का बोध होता है । अन्य काल में भी | जब यह उठ जाए गा, तब गुण याद आएँगै'; परन्तु सर्वत्र ऐसा अर्थ नहीं निकलता रोम सबेरे ही उठ जाता है। प्रति दिन राम सवेरे स्वयं उठता है, यह मतलब । कहने वाले की प्रसन्नता फी भी अभिव्यक्ति होती है। क्या कारण कि यहाँ मृत्यु की प्रतीक्ति नहीं होती । “उठ जाती है या उठ जाया करता है' कहने से क्रिया का बार-बार होना स्पष्ट है। राम नित्य उठता है। नित्य उठने से ही उस ( मूल्यु ) अर्थ का निरसन । मर जाने पर फिर कोई उठे गा कैसे ? हाँ, वह अज उठ गया' में भूतकाल का ‘य' और 'आज' शब्द वह अर्थ देते हैं। यदि प्रकारान्तर से भूतकाल में भी नित्य उठना कहा जाए, तो भी वह ( अनभीष्ट ) अर्थ न निकले गा-