पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/५३२

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(४८७ ) राम तब सबेरे उठता था राम सबेरे उठ जाया करता था राम तब सबेरे उठ जाता था यहाँ था' से भूतकाल स्पष्ट है; परन्तु 'त' प्रत्यय से क्रिया ( उठने ) का बार-बार होना प्रकट है । इस लिए, ऐसी स्वागह, मृत्यु की प्रतीति नहीं। होती ।।

  • राम आ गया !

हर्ष की ध्वनि है। 'आज गाउँ में डाका पड़ गया !' शोक तथा आश्चर्य की ध्वनि है ।। वह धोखा खा गया ? अाश्चर्य तथा आकस्मिकता प्रकट हैं। ‘कुत्तो रोटी खा गया ! दुःख की व्यञ्जना है। इसी तरह अनन्त भाव सहायक क्रियाओं से ध्वनित होते हैं। पड़ना' सहायक क्रिया पड़ना' (‘पड़') का स्वतंत्र प्रयोग भी होता है-इस का उस पर, अवश्य प्रभाव पड़े गा' और 'मैं जब पडू या, तो उहूँ मा न’ इत्यादि । सहायक क्रिया के रूप में पड़ का प्रयोग होने पर आकस्मिक्का तथा विषाद आदि की प्रतीति होती है १-लड़का कोठे से गिर पड़ा । | २-जब कोई गिर पढ्ता हैं, तो लोग हँसने लगते हैं । ३-झाँक मत, गिर पड़े गा ४-तैर मत, बह चाए गए ! "गिरना’ और ‘पड़ना' प्रायः समानार्थक हैं; परन्तु संयुक्क रूप से विविध भाव भी ध्वनित होते हैं। कोई फल ऊपर ( वृक्ष ) से कब टपक पडे गा, कोई नहीं जानता। इसी लिए 'यार, तुम कहाँ से आ टपके हैं कहने से आने की आकस्मिकती प्रकट होती है। ‘लाला सहायक क्रिया इस को भी स्वतंत्र प्रयोग होता है-जुट जाना' अर्थ में । मैं अब किसी काम में लगता हूँ, तो पूरा किए बिना छोड़ता नहीं ।' सहायक क्रिया के