पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/५३३

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(४८८ ) रूप में आकर यह ‘प्रारम्भ' आदि प्रकट करती है। मूल क्रिया भाववाच्य कृदन्त ‘न' प्रत्यय से रहती है। पुंविभक्ति ( ‘अ’ ) को ‘ए’ हो जाता है---- १-लडूका सोने लगता है, तब हम शोर नहीं करते २--लड़की सोने लगती है, तब ते भोजन के लिए जगाती है। ३--हम सोने लगते हैं, तब तुम शोर क्यों करते हो ? इसी तरह सकर्मक क्रियाओं के साथ भी- १—-मैं पुस्तकें रखने लगता हैं, तब तुम माँगते हो ! २-तुम पुस्तकें रखने लगते हो, तब मैं चल देता हूँ। ३-छात्राएँ पुस्तकें माँगने लगती हैं, तब रुकतीं नहीं। सर्वत्र ने मुख्य क्रिया में रहे गी । लगना क्रिया अकर्मक है; इस लिए भूतकाल में भी इस से ‘कर्तरि प्रत्यय होता है; कर्मणि' या ‘भावे नहीं; अर्थात् कर्ता में 'ने' विभक्ति न लगेगी । | १-लड़का पुस्तकें माँगने लगा | २-लड़की पुस्तके माँगने लगी। । ३-हम पुस्तकें माँगने लगे यदि सकर्मक क्रिया सहायक हो, तो फिर अकर्मक क्रिया से भी भूतकाल में ‘भावे' प्रत्यय होता है, कर्तरि नहीं- १-इम ने बहुत सो लिया | २—तब लड़की ने रो दिया | अकर्मक में कर्मवाच्यता को कोई सवाल ही नहीं ! कर्तरि प्रयोग करने हो, तो 'चुना' लगाएँ में- १-हम सो चुके २लड़का सो चुका ३-लड़की सो चुकी चुफना' अकर्मक है; इस लिए सकर्मक क्रिया के भी कर्तृवाच्य ही प्रयोग हौं गे, कर्मवाच्य या भाववाच्य नहीं--- १-लड़के पुस्तकें पढ़ चुके २---लड़कियाँ ग्रन्थ पढ़ चुकीं ३-लड़का संहिता पढ़ चुका