पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/५३४

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न कर्ता में ‘ने है; न कोई अन्य चीज कर्मवाच्यता की ! प्रेरणा में भी यही बात--- १–अध्यापक लड़कों को पुस्तकें पढ़ा चुके २- हम लोग लड़कियों को वेद पढ़ा चुके ३-- मा बेटी को वेद पढ़ा चुकी ४-माताएँ पुत्रियों को वेद ढ़ा चुकी सर्वत्र कर्ता के अनुसार क्रिया है । अकर्तृक ( कर्मकर्तृक ) प्रयोग में- १—पुस्तक पढ़ी जा चुकी २---पुस्तकें पढ़ी जा चुकी ३—ग्रन्थ पढ़ जा चुका ४—सब ग्रन्थ पढ़े जा चुके और प्रेरणा में अकर्तृक--- १—पुस्तक पढ़ाई जा चुकी २-पुस्तकें पढ़ाई जा चुकी ३-प्रन्थ पढ़ाया जा चुका ४सब ग्रन्थ पढ़ाए जा चुके यही बात अन्य संयुक्त क्रियाओं में भी है। 'बैठना' सहायक क्रिया ‘बैठ भी अकर्मक है और सहायक क्रिया के रूप में आ कर साहसिकता, अविचार्यकारिता, जल्दबाजी आदि की ध्वनि देती है। सदा कर्तृवाच्य रहे गी; भूतकाल में मी-- १- मैं ऐसा काम कर बैठा । २---तब तक तुम चोरी कर बैठे ! ३—तुम पूड़ियाँ बना बैठौं ! “वह उठ बैठा' में उठना-बैठना' एक क्रम है । वहाँ साहसिकता का ‘जल्द-बाबी जैसी कोई बात नहीं भी हो सकती । बैठ' का वैसे अर्थ में सहायक रूप से प्रयोग प्रायः सकर्मक क्रियाओं में ही होता है। ‘उठना तो अकर्मक क्रिया है। रोना' जैसी अकर्मक क्रिया से उठ का मैल अवश्य बैठ जाता है-