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‘पाना' सहायक क्रिया

पाना' जब सहायक क्रिया के रूप में आती है, तब क्रिया में परतः बाधा प्रतीत होती है-“मैं यहाँ पढ़ नहीं पाता' 'तू यहाँ काम नहीं कर पाती राम सो नहीं पाता। पढ़ने नहीं पाता' सोने नहीं पाए गा' आदि भी प्रयोग होते हैं। ‘पा सकर्मक धातु है और भूतकाल में मैं ने एक धोती पाई जैसे कर्मवाच्य प्रयोग होते हैं । परन्तु सहायक अवस्था में सदा कर्तृवाच्य---‘सीता काम नहीं कर पाई राम पुस्तक नहीं पढ़ पाया ।। यह क्या बात है जब कि सकर्मक क्रिया सहायक-रूप में हो, तो भूतकाल में कर्मवाच्य प्रयोग होता है; कर्म की अनुपस्थिति में भाववाच्य । तब यह

  • पा अपवाद में कैसे ? भाषा के अनन्त प्रवाह में अपवाद कहीं कोई होता

ही है । परन्तु यह अपवाद हुआ क्यों ? ऐसा जान पड़ता हैं कि लाथा' की छाया पाया' पर पड़ गई है। पहले कहा बा चुका है कि श्राना ‘जाना जैसी ( गत्यर्थक ) सकर्मक धातुओं के भी भूतकाल में कर्तरि प्रयोग होते हैं; संस्कृत-व्याकरण की पद्धति पर---रामः काशीं गतः'–'राम काशी गया' और 'बालिका गृहम् अगिता-“लड़की घर आ गई । “लेना’ सकर्मक है; इस लिए - राम ने पुस्तक ली' । 'ले' के साथ श्रा' लेम कर. एकाकार ‘ला' हो गई है और इसी लिए भूतकाल में इस पुस्तक लाया होता है; जब कि 'पा' का 'राम ने पुस्तक पाई’ कर्मणि प्रयोग । परन्तु यही ‘पा सहायक रूप में श्री कृर जब कमजोर हो गई, तो ला’ की चाल चलने लगी---- राम पुस्तकें उठा लाया राम पुस्तकें न पढ़ पाया असमर्थतया परतः बाधा ‘पा'-सहायक क्रिया से ध्वनित होती है। सो, उस मुख्य नियम का यह अपवाद है । और भी कहीं कोई प्रयोग ऐसा मिल सकता है। परन्तु नियम दी है। संस्कृत पर ध्यान रखने से fन्दी में ‘पा के ऐसे प्रयोग जान पड़ते हैं । वहाँ प्राप्' के ( पहुँचने के अर्थ में अन्य गत्यर्थक धातुओं की तरह कृदन्त भूतकाल में कर्तृवाच्य---‘रामः काशी प्राप्तः जैसे प्रयोग होते हैं और 'लाभ'--अर्थ में कर्मवाच्य---‘रामेण संहिता प्रास' । हिन्दी में भी 'राम ने संहिता पाई कर्मवाच्य; परन्तु सहाय-अवस्था में रामः काश प्राप्त की तरह कर्तृवाच्य--‘राम पुस्तक न पढ़ पाया' । “पा