पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/५४२

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विशेषण है 'जाम'। जाम हो जाना—जम कर चिपट जाना । बा जाम से ‘जभना' नामधातु है ? या ‘जमना' से 'जाम' संज्ञा है ? ऐसी उलझनें सामने आती हैं। इस के लिए ऊहापोह भाषा-विज्ञान का विषय है; व्याकरण का वैसा नहीं । परन्तु दिग्दर्शन जरूरी है। जमना'-राम अब यहाँ जम गया सूल क्रिया जान पड़ती है। यहाँ जमने' को लाक्षणिक प्रयोग है। मूलतः 'जमना' अन्यर्थक है--सुबे जगह श्राम नहीं जमते’ | ‘नहीं उगते' अर्थ में है ‘नहीं जम” । ऊँ उपजते हैं, और आम का पौधा जमता है। जड़े पकड़ छाना---‘जमना' । म गया, तो उखड़ना कठिन। इसी सादृश्य से ‘राम जम गया' श्रादि प्रथोर । अङ्गद का पाउँ जम गया, कौन इधर-उधर करे । परन्तु यह पेड़ों का जमना भी भूलधातु से है, या मधातु से १ साधारणतः मूल घातु ही सब इसे समझते हैं । अनसननासधातु की यह रूपान्तर है। 'अन्न उपजता है और ‘मानव जनमते हैं । अते हैं' गते प्रयोग है। हिन्दी संस्कृत ( तत्सम) शब्दों से अपने नासधातु नहीं बनाती । ते जनमें कालिकाले फरादा' जनमत-भरत रत्न सई जग में । जन्मत' नहीं । इसी ‘जुनस' के मध्य-लोप से जम' धातु निष्पन्न है । जंगम प्राणियों के लिए जनम धातु और स्थावर या उद्धि के लिए जम' । सो, ‘जमुना' है 'जनमने' का विकास । अव इस { बम ) को मूल धातु मानें है, या ‘नामधातु’ ? खून सोचने पर ऐसा लगता है कि संस्छ बन्' धातु को ही सुरु झर के और आगे ‘म’ का आगम कर के हिन्दी नै 'अनम' धातु बना ली है और नु' का लोप कर के चम' । यानी लन्' संज्ञा से यह अदम' नामधातु नहीं जान पड़ती; आगे 'श्री' प्रत्यय नामधातु का नियर्दिक नहीं है ! विचार करने पर, ‘पीनक' संज्ञा से निक' ( पिऊना ) नामधातु के लोगों ने मानी है, गलत जान पड़ता है। ‘' प्रत्यय आई है ' पिंदा है' आदिं में १ सो, ‘पिनक' मूल धातु और उस से “चीनक' संज्ञा | मझता हैं' क्रिया; धातु है 'समझ' और इसी घर से स्त्रीलिङ्ग संज्ञा ‘समझ । 'समझाता है--- प्रेर-रूप है। यानी जहाँ मूलतः क्रियाश नर् , और अंडे *श्रा'