पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/५४५

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अत। घास स्वयं सूख जाती है । धूप अादि हेतु' हैं। ‘कर्ता नहीं हैं। हाँ, करण-हेतु अादि का कर्ता के रूप में यौवा प्रयोग कर सकते हैं-धूप घास को सुरुवात है'। जने कारकान्तर का प्रयोग कर्ता की तरह हुआ, तो असली कस । “घाख’ ) कर्स के रूप में आ गया ।. यो ‘सूखना' की यह प्रेरणा बन गई’ सुखाना' । मूल धातु सूखना ( ‘सूख' } ही है। पूरब की बोलियों में अवश्य सुन्ने' से नामातु ‘सुखा’ चलती है----‘ख्यात सुखाए जात हैं। खेत सूखे जा रहे हैं राष्ट्रभाषा में। - खैर; यह तें रहा कि सूरखना' आदि क्रियाएँ ‘सूख आदि मूल धातुओं से हैं और 'जोनाः श्रादि नामधातुओं की सृष्टि है ।

‘चमकुना मूल धातु से है----‘सूरज चमकता है, तारे चमकते हैं । बर्तन भी चमकते हैं, यदि कोई भाँज कर चमका दे। लड़की बर्तन इमका देती है या कोई कुछ चमकाता है' में चमकाना प्रेरणा-रूप है। मूल रूप है-चमकना । सूरज स्वयं चमकता है । पर बर्तन चमकाया जाता है । ‘बरतने चमकते हैं। यदि नए हों । पुराने ही कार मैले हो गए हों और उन्हें खूब माँज कर किसी ने न्वमझाया हो, तब इस प्रेरणा का कर्मकर्तृके रूप ‘बर्तन चमक उठे।' सो, ‘चमका नाभधातु नहीं है। हाँ, ‘चमंचमाना' अवश्य नामधालु हैं। 'बर्तन चमचमाते हैं जब साफ होते हैं । चमचम’---चांकचिक्य ! •“चम चम' ऊरना, चाकधिक्य पैदा करना | बर्तन चमचम करते हैं—“बर्तन चमचमाते हैं । “चमचम” से “आ” प्रत्यय, खवणे दीर्घ --बमचमा' नामधातु ।. .. . ...... ... ... . चीज़ स्वभावतः कड़वी हो, तो और बात है; है ही। परन्तु कोई चीज स्वंभवतः कडू न हो; किन्तु विफोर-वंश कड़वापन उस में आ गया हो, तो नामधातु से--कवाता हैकड़वाती हैं । कड़वा लगता है-“कड़वाता है और कड़वी लगती हैं-छुड़वाती है । . 'कटुक' से 'कटुअ' और '2' को 'g' (इ) तथा पुंबिभक्ति'कडुआ। . पूरब में यह पुंविभक्ति नहीं लगती; यहाँ ( ‘ड’ को ‘२’ कर के और अपनी ' विभक्तिः लगा कर ) करूखकरू है' 1. मिठाई करुन लागिः सन् कुछ करुति है, किंउ न नीक होय, तौ ।' यानी “करू' से 'आ' प्रत्यय । ऊ’ को ‘उद्’ और ‘बु” का लोप : .:..::.:::::