पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/५४६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
(५०१)


खड़ी बोली के कड़ा' को फिर ( उर्दू वालों ने ) कड़वा बना लिया--७’ को ‘ब्’ और ‘g में ‘अ’ का झागम | इसी कड़वा से नामधातु का 'अ' प्रत्यय, सवर्ण दीर्घ 'कड़वाना' । 'मिष्ट' से 'मीठ' तद्भव । कोई चीज मीठी लगती है-मिठाती है । श्रॉवले खा कर पानी दियो, तो मिठाता है । मीठ' से प्रत्यय और प्रथम स्वर ह्रस्व---मिठाना' । खट्टी चीज पीतल के बर्तन में कसा जाती है। ‘फसाना नामधातु और जाना मूल धातु । दोनों मिल कर संयुक्त-क्रिया-कसा जाना—कषैला हो जाना, कषाय-रस के रूप में परिवर्तन हो जाना । केवल ‘कुसता है' भी चलता है-- चीनी के बर्तन में खड़ी चीज कसाती नहीं हैं। इसी तरह ‘खट्टा विशेष से खटाना' नामधातु की क्रिया है। एक ‘ हटा कर ‘' प्रत्यय । खट्टा लगता है---खटाता हैं । झरघे का बना कहा बहुत खटाता है' में खटाना' भिन्न १ मूल ) क्रिया है। हटाता है-- बहुत दिन चलता है-टिकाऊ होता है । यह ‘खुटाना क्रिया बंबई की ओर से हिन्दी में आई है--जहाँ-तहाँ प्रयुक्त होने लगी है। ‘टिकाऊ' के अर्थ में खटाऊ” विशेषण भी वस्त्रों के विज्ञापनों से छलने लगा है ।। कठिन बात सोचते-सोचते दिमाग चकराने लगता है?---चक्कर में पड़े जाता है ! ‘चक्कर’ चक्र' का तद्भव रूप } चक्क गोल होता है; इसी लिए गोल दही बड़े को कहीं कहीं 'चक्ररा' कहते हैं-बैराशी मकरा' कहते हैं । रोटी या पूड़ी जिस गोल चीख पर रख कृर बेली जाती हैं, उसे काला हवे हैं --‘र’ को ‘ल' कर के । 'चकरा' तो दही-बड़ा है न ! जिस जाजार में लोग १ भले लोग 1) चक्कर काटते रहते हैं, उसे भी ‘वकलः कइते हैं । संस्कृत में इस चकले’ को कभी किसी समय लोग द्वार’ ऋते थे । 'यार' में बैठने वाली स्त्री-दारस्त्र' । ‘बार' में बैठ र मुख दिलाने वाली-~-‘बारमाही । आज कल शराब की दुकान को भी अंग्रेजी में 'बार' ( ‘बार ?' ) इले हैं। मेले की चीज है ! ‘माई'-मिट्टी-मैया मैं नहिं खाई माटी’ ‘माटी की भूरतें' । माटी लगा कर हाथ धनः--दार्थ सटेयानः । वह उस समय हाथ मटियाता था, या मटिया रहा था -मिट्टी लगा कर हाथ धो रहा था । ‘माटी से 'अ' प्रत्यय, प्रथम स्वर ह्रस्व और अन्त्य भई को इयू’---‘मटिया नामधातु । ‘छुछुवान भी नामधातु है। किसी के जैकार इङ्घर-उधर घूमने-फिरने के प्रति घृणा प्रकट करने के लिए कहा जाता है---‘ज देखो, तब सब जगह