पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/५४८

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  • पिरार्दै मोरी अँखिया' तिङन्त प्रयोग है। पुल्लिङ्ग कर्ता में भी यही रूप रहे गा। परन्तु ‘हाथ पिरत हैं और नाक पिराति है' में भेद् पड़ता है। राष्ट्रभाषा का ‘ती’ अवधी में 'ति' है। ‘हाथ पिरात हैं' और 'हा। पिरायँ अाजु बहुतै री' की क्रियाओं को एक ही मतलब है-“हाथ दुखते हैं। तो, कोई अन्तर न होने पर भी शब्द-भेद क्यों ? 'अर्थ-मेदात् शब्दभेदः' । अर्थ-भेद होने पर ही शब्द-भेद होता है। अर्थ-भेद है---तिङन्त *पिरायँ प्रयोग वर्तमान काल में होता है-'पिरायें मोरी अँखियाँ - मेरी

आँखें दुख रही हैं । साधारण अभिधान में यह तिङन्त प्रयोग न हो गा‘उदर-विकार ते आँखें पिरती हैं.–पेट में गड़बड़ी हो, तो आँखें दुखने लगती हैं। यह साधारण कथन है । धर्तमान काल नहीं है । क्रिया के आरम्भ से ले कर उस के पूरे होने तक का समय “वर्तमान' कहलाता है--- जब तक क्रिया की प्रवृत्ति रहे, क्रिया जारी रहे, तब तक ‘बर्तमान काल । उदर-विकार से ‘आँखें पिरोती हैं' कहने से यह नहीं समझा जाता कि अखें दुख रही हैं। सामान्य कृयन है। कहीं वर्तमान का भी बोध हो जाता है‘श्राजु इमार हाथ पिरात है'---‘श्रीज हमारे हाय दुखते हैं । यहाँ ‘पिरात हैं कृदन्त-तिङन्त से वर्तमान काल की प्रतीति है-क्रिया वर्तमान है । यह अजु' शब्द के कारण । परन्तु पियँ तिङन्त का प्रयोग सुदा ही क्रिया की वर्तमानता प्रकट करे गा-वैसा साधारण अभिघान इस से न हों गा । असावधानी से कोई गलत प्रयोग करे, यह अलग बात है । संस्कृत तिंन्त क्रिया से वर्तमान के साथ साधारण प्रवृत्ति भी प्रकट होती है-*प्रमत्तः किं न जल्पन्ति ?' प्रमादी लोग सब कुछ बझ सकते हैं !-बकते हैं ? राष्ट्रभाषा में 'आज मेरी आँखें दुख रही है। बैल्ली क्रियाओं से वर्तमानला प्रकट होती है। कभी-कभी रद्द के बिना भी-'मेरी आँखें दुखती हैं अर्ज बहुत' जैसे प्रयोग भी वर्तमानता प्रकट करते हैं। परन्तु 'रह के बिना ऐसे प्रयोगों से साधारण अभिधान भी होता है; यह पीछे कह आए हैं---‘शेर मांस खाता है, आदमी अन्न खाता हैं। और–‘परसी एकादशी है। जैसे प्रयोग भी सामने हैं। एकादशी की वर्तमानता नहीं हैं। श्राब पाँच वर्ष से युद्ध चल रहा है। युद्ध की क्रिया प्रारम्भ हुए पाँच वर्ष हो गए और अभी तक उस की समाप्ति नहीं है–उस की वर्तमानता है। क्रिया की समाप्ति पर तक न हो, वर्तमानता रहे गी। हजारों-लाखौं वर्षों तक्त, वा प्रलय-पर्यन्त भी किसी क्रिया की वर्तमानता रह सकती है---‘भगवान् की सृष्टि दले रही है !