पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/५५२

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पाचवाँ अध्याय

किया की द्विरुक्ति।

जब क्रिया को बार-बार होना, या अत्यधिक होना विवक्षित हो, तो द्विशक्ति होती है । *खा-खा कर मरे गा क्या ! अधिक स्वा करखा वा फर'। संस्कृत में भी ऐसी स्थिति में क्रिया की द्विरुक्ति होती है। इस विषय को वहाँ यन्त' तथा 'यङलुगन्त' प्रकरण में रखा गया है। वह वैसी स्थिति में पूर्व अंश में बहुत अधिक परिवर्तन हो जाता है। परन्तु हिन्दी में दोनो अंश ज्यों के त्यों रहते हैं। वहाँ ‘आख्यात प्रायः उस स्थिति में श्राती है। हिन्दी में क्रिया का सातत्य 'ही' जैसे अव्यय से भी प्रकट हो जाता हैं*वह तो खाता ही गया, जब तक के न होने लगी।” “क्या पीते ही चले जाओ गे १ श्रादि । “खाते जाना' तथा 'पीते चले जाना' संयुक्त क्रियाएँ हैं। ‘जाना' सहायक क्रिया भी अतिशय्य मुक्कड़े करती हैं-खाता जाता हैं, पीता जाता हैंअदि। और भी अधिकता प्रकट करने के लिए काल' धातु लगा देते हैं-खाता चला जाता है पता चला दावा हैं। और भी आधिक्य तथा नैरन्तव्यं प्रकट करने के लिए ही अव्यय-खाता ही चला आता है। परन्तु खाता-खाता है' या पीता पीता हैं' जैसे प्रयोग न हों में ।। खा खा कर मरे गा में पूर्वकालिक क्रिया द्विरुक्त है । हेतु-रूप क्रिया की द्विरुक्ति *बहुत चला, इस लिए थक गया’ ! इस में बहुत चलन’ हेतु है और *युक जाना हैतुमान् है । बहुत चलने को द्विशक्ति से भी प्रकट कर सकते हैं; भाववाचक कृदन्त ‘त' प्रत्यय के योग से १--राम चलते-चलते थक गया २–सीता चलते-चलते थक गईं ३- मैं चलते-चलते थक गया। ४---इम चलते-चलते थक गये ।