पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/५५४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
(५०९)


भावात्मक रूप से कह दें--‘लड़का चलते-चलते थक गया' या 'चलले. चलते लड़का थक गया तो क्रियांश ( चलने ) की प्रधानता दवती नहीं है; यद्यपि है यह भी वहीं अन्वित----उसी ( हात ) की विशेषता यह भी एक करता है । दोनो तरह से थकान लड़के पर ही है। परन्तु यह ‘भावात्मक विशेषण साफ शब्दों में विशेषण' नहीं कहलाता है। श्रीगिरिस्का शंकर वाजपेयी केन्द्रीय सरकार के सर्जेन्ट थे' न कहा जाए गा; केन्द्रीय सरकार की सर्विस में थे' कहा जाएगा । स्थिति में अंतर से प्रयोग-भेद । यही कारण है कि लड़का चलता चौता थक गया' में चलता-चलता' 'विशेष' है और चलते-चलते’ (विशेषण होने पर भी ) “विशेषण' नहीं है--- कभी भी विशेष्य के अनुसार रंग-रूप यहाँ नहीं बदलती---श्नपनी स्थिति है । दबता नहीं है । इस भावात्मक द्विरुक्ति को ‘क्रिया-विशेष' नहीं कह सकते; क्यों%ि क्रिया ( थकने ) में इस से कोई विशेषता नहीं जान पड़ही; हेतु भर है। इस संबन्ध में अधिक जो कुछ कहना है, आगे ‘क्रिया--विशेष’ के प्रकर में ही कहा जाए गा | इस जगह एक प्रसंग-प्राप्त विचार उठा है, देख लीजिए । “सीता चलते-चलते थक गई आदि में 'एङ्गारान्त रूप हैं । हम ने कहा है कि “आ’ को ‘ए’ हो जाता है और यह अव्ययकल्प है; सदा ऐसा ही रूप रहता है। और सब तो ठीक; पर 'श्री' को होना विचारणीय है। पहले 'श्री' पुंविभक्ति और फिर उसे ‘’ रन प्रक्रिया-गौरव है। दूसरे, जब संज्ञा-विभक्ति ‘अ’ बहुवचन और स्त्रीलिङ्ग में रूपान्तरित होती ही है, तत्र यहाँ उस नियम की शिथिलता क्यों ? कैर, ब्रजभाषा तथा राजस्थानी में 'श्री' पुंविभक्ति है-“देखो काम’ ! वहाँ भी ऐसे गयी मनु समुझवै’ “कैसे मति मेरी समुॐ' श्रादि रूप से क्रिया-बिशेधश एकान्त ही रहते हैं । जहाँ पुंबिभक्ति न ‘अ’ हैं, न ‘ो' है, वहाँ ( पाञ्चाली श्रादि में ) भी ‘ऐसे कामु न चलि है' 'तुम कैसे इयो कामु झरि श्रादि रूप से ऐसे कैसे एकारान्त प्रयोग ही क्रियाविशेषण के रहते हैं। ऐसा के क्षेत्र में ऐसे क्रिया-विशेषण, ‘ऐसो' के क्षेत्र में भी और ‘ऐस' के भी क्षेत्र में। ऐस' का उच्चारण ( “अइस जैसा ) पृथक् होता है। सा’ को भी पइसा जै? बोलते हैं। यह उच्चारण-भेद है । ऐस' सर्वत्र समान हैं। ऐसी स्थिति में तीन-तीन नियम बनाने पड़े थे ' को को जाता हैं, ' के * हो जाता है और ( ऐस' आदि के ) "अ' को हो जाता है ! युवा =