पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/५५६

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१-तू पढ़ाता-अढ़ात तो है नहीं ! २-तू पढ़ाता-बढ़ाता तो है नहीं ! पहले उदाहरण में 'g' का लोप और दूसरे में पू’ को ‘’ हो गया है। जल्दी-जल्दी में क्रिया की निष्पत्ति प्रकट करने के लिए भी द्विशक्ति होती है और परखण्ड में ‘ा' प्रत्यय लगता है-- १–ध घंटे में सब कर-करा ले २--एक वर्ष में सब पढ़-पढ़ा के उपेक्षा में भी--- “अरे भाई, आगे चल कर नहा-सहा लेना' । पुर-खण्ड में न्’ को ‘स्’ आदेश ।। यदि दूसरी स्थिति हो, तो–“नहा-धो कर चले गे'। मतलब, अच्छी तरह स्नान आदि कर के ।। | कर्ता की असमर्थता या उपेक्षा आदि प्रकट करने के लिए भी आ प्रत्यय झाम अता है १-तुम से होता-हचावा तो कुछ है नहीं ! २–तु छूता-ढुंबाता तो है नहीं ! पहले उदाहरण में पर-खण्ड के 'ओ' को 'अ बू हो गया है और दूसरे में ‘क’ को ‘उव’ हुआ है। बु’ का वैकल्पिक लोप---‘छूता-छुता ' । समानार्थक क्रिया से पुनरुक्ति . एक ही क्रिया की द्विरुक्ति ऊपर बताई गई । इसी तरह समानार्थक क्रिया से भी द्विरुक्त होती है, जब कि क्रिया का ‘सम्यक् होना’ प्रकट करना अभिप्रेत हो १- समझ-बूझ कर आगे पर बढ़ाना २---देख-भाल कर काम करना चाहिए 'समझ' के ही अर्थ में “बुझ' का प्रयोग ‘अवधी' आदि में होता है*अजहुँ न बूझ अबूझ !'नासमझ ले अब भी न समझा ! *बुध' से *बूझ’ है। राष्ट्रभाषा में मैं समझता हूँ' तथा 'समझे' आदि की जगह ‘ब्रूझता