पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/५६७

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वह 'हिन्दी की बोली' । यह हुई एकसूत्रता । और के, रे, ने संबन्ध विभक्तियाँ। पहाडी (गढ़वाली तथा कुमाञ्चल) बोलियों में भी 'क' तथा 'ॐ' हैं। | पुंबिभक्ति में भेद है। कहीं श्रा' है, कहीं 'ओ' है और कहीं ( पूरी बोलियों में ) ' है। परन्तु यह ‘3' विभक्ति छ' आदि तद्धितीय प्रत्ययों में नहीं लगती; “करिनु” ( कारण ) आदि भाववाचक संज्ञाओं में प्रायः लगती है, जन कि खड़ी बोली ऐसी संज्ञाओं में अपनी पुंविभक्ति नहीं लगाती-‘कार’ को कभी भी कारण न हो गा ! यहाँ तो “धारा' 'धारणा आदि संस्कृत तद्रूप भाववाचक पुल्लिङ्ग-स्त्रीलिङ्ग संज्ञाएँ वैसा ही रूप रखती हैं। 3' पुंप्रत्यय का ब्रज पर भी प्रभाव है; पर प्रयोग में अन्तर है। ब्रज की बोली में श्रावतु है? *सोवतु हैं जैसे एकवचनं चलते हैं, राष्ट्रभाषा में ‘अता है'--'सोता है। अवध आदि में 'उ' का प्रयोग एकवचन क्रिया में नहीं होता। वह ‘आवत हैं' ‘जात है' चलता है। साहित्यिक ब्रजभाषा ने ब्रजजनपद के 'श्रावतु' खातु' आदि उकारान्त क्रियापद नहीं लिए, कन्नौज के प्रावत’ ‘खात आदि रखे हैं। ब्रज में क्रिया के हु' का प्रायः लोप हो जाता है-'है' को 'ऐ' और 'ई' को 'ए' बोलते हैं । परन्तु साहित्यिक ब्रजभाषा ने सर्वत्र व्यापक रूप है'...हैं? रखे हैं । 'ही' अव्यय के “’ का लोष साहित्यिक ब्रजभाषा में अवश्य देखा जाता है—ऐसोई कछु वाको सँदेसो’--ऐसा ही कुछ उस का सँदेसः । ब्रज के ‘हू' अन्य को राष्ट्रभाषा ने भी ‘ह्’ का लोप कर के कहीं ग्रहण किया है—चारों'। ब्रजभाषा में भी है' का लोप, परन्तु सुन्धि --'चारौ' ।। | हिन्दी की सभी बोलियों में सोव, रोव, धोव, श्राव जैसे धातु-रूप हैं'सोवत है' आदि क्रिया-पद ! कहीं 'व’ को ‘उ’ सम्प्रसारण—‘सोउत है । परन्तु राष्ट्रभाषा में धातु-रूप हैं-सो, रो, धो, अ आदि । सोता है जैसे क्रिया-प्रद । मेरठीय जन-भाषा में ( 'बोली' में ) 'सो' और सोव’ दोनो रूप सुने जाते हैं---सोचा है राम' और 'सोवै सै'-'सोवै है' भी। संभव है, सोव' जैसे धातुरूप पड़ोसी प्रदेश पंजाब या ब्रज से आ गए हों ! परन्तु राष्ट्रभाषा ने ‘सव’ आदि धातुरूप नहीं लिए; सो, रो, आदि ही यहाँ हैं । अवधी अादि बोलियों से ही नहीं, अपनी’ ( मूल ) मेरठी या ‘खड़ी बोली से भी कहाँ हिन्दी ( राष्ट्रभाषा ) में यह स्पष्ट मौलिक अन्तर है। परन्तु कई कृदन्तु प्रयोगों में अष्ट्रभाषा पूरबी बोलियों से प्रभावित है । अरबी बोलियों में सामासिक कृदन्त भाववाचक संज्ञाएँ—आवाजाई ‘वावी