पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/५७४

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के कारण इन तीनो बोलियों की एकत्र स्थिति है । पूरब की पाञ्चाली, अवधी, भोजपुरी, मगही, मैथिली अदि में यई ‘ग' नहीं है। वहाँ भविष्यत् काल की क्रियाएँ प्रत्ययान्तर से बनती हैं और पूरी तरह तिङन्त हैं-‘साध्य’-रूप से हैं । पाञ्चाली में (“पढ़े गो' की जगह } ‘पड़िहै' चलता है । इहै' प्रत्यय पुल्लिङ्ग-स्त्रीलिङ्ग में एकरूप रहती है। ब्रज की जनभाषा में ‘ग' कृदन्तबहुल रूप हैं --चलै गो, चलें गे, चलै छी । परन्तु साहित्यिक-ब्रजभाषा में पाञ्चाली का ‘इहै' प्रत्यय भी ले लिया हुया है । 'चलै गो के साथ चलि है। की चहल-पहल भी है। ब्रजभाषा में भी धातु-रूप हिन्दी की अन्यान्य बोलियों के समान ही हैं-श्राव, सोव, रोख आदि} ब्रजभाषा-राजस्थानी अादि की पुंविभकि* *श्रो संकुचित हो कर पाञ्चाली में तथा अवधी आदि में उ’ हो गई है। *अयो’ ‘ऐसो मीठो आदि में तो ब्रजभाषा स्पष्ट ही राजस्थान के साथ है----‘ओ' पुंविभक्ति है। परन्तु “एकुइ त डर हैं। श्रादि में 3 बवासी लोग बोलते हैं । यानी ब्रज की बोली इस अंश में पाञ्चाली से प्रेमावित हैं। | इसी तरह जातिवाचक संज्ञाओं की स्थिति ब्रजभाषा में खड़ी-चोली के अनुसार ई-पपीहा, सुग्गा, छोरा, घोड़ा आदि। राजस्थान में यह पुंविभक्ति लगे सी-पपीहो, सुग्गो, छोरो, लड़को आदि । फलतः ब्रज में घोड़ो' बतलाना गलती है। । यहाँ ब्रज पर ‘मेरठी बोली” का प्रभाव है। मेरठी ( खडू-बोली ) में ‘लड़का अच्छा है' और ब्रज में–छोरा अच्छी है । 'छोरा' खड़ी-बोली की पद्धति पर आकारान्त और अच्छी विशेषण राजस्थान के अनुसार ओकारान्त । क्रिया भी राजस्थानों के अनुसार ओकारान्त---‘छोर आयो । राजस्थानी में संज्ञा भी ओकारान्त रहे गी-लड़को आयो' ।। ब्रजभाषा अकारान्त पुल्लिङ्ग विशेषणों के तथा क्रिया-प्रर्दी के बहुवचन रूप भी खड़ी बोली के अनुसार एकारान्त रखती हैं इङ्गवचन बहुवचन खड़ी बोली लड़का या लड़के थे आए व्रजभाषा--- छोरा आयो छोरे अाये (आर) • राजस्थानी-- लड़को यो लड़का या ३४