पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/५८४

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निकली विभिन्न भाषाओं को एक दूसरी से विभक्त करती है। धातु' तो कर ‘जा' आदि सर्वत्र प्रायः समान ही हैं; उन में लगनेवाली विभकियाँ भिन्न हैं। इन्हीं से भाषा-भेद होता है। 'बालक' शब्द संस्कृत का सर्वत्र समान है । इस से भाषा-भेद न हो ग | परन्तु बालक झा’ हिन्दी, बालक दा पंजाबी, बालुकेर' बंगला, बालक चा' मराठी, ‘बालक नो’ गुजराती । संबन्धप्रत्यय या विभक्ति से भाषा-भेद हो गया। ‘प्रत्यय' से भाषा-भेद को प्रत्यय ( बोध ) होता है। विभक्ति बोलियों को तथा भाषाओं को विभक्त करती है। ‘बटन से कोर्ट में ये हिन्दी के पद हैं; क्योंकि विभक्तियाँ ‘से–‘में हिन्दी की हैं । 'धोतीज़' अंग्रेजी का पद' हो गया; क्र्योंकि बहुवचन बनाने वाली विभक्ति या प्रत्यय अंग्रेजी का है। ‘बटन' शब्द अंग्रेजी को; पर ‘बटन से' पद हिन्दी का और धोती प्रातिपदिक हिन्दी का; पर ‘धोतीज़ पद अंग्रेजी का । सो, प्रत्यय-विमक्तियों के अन्तर के कारण हिन्दी की सब बोलियाँ दो मुख्य समूहों में विभक्त हैं। मुरादाबाद, सहारनपुर, मेरठ और दिल्ली में ( ‘खड़ी पाई' के कारण ) खड़ी बोली' कृदन्त-बहुल है। दिल्ली से आगे मथुरा, आगरा, भरतपुर ‘ओ-बहुल ( और ‘अ’ को भी कहीं लिए हुए } भाषा भी कृदन्तबहुल--ब्रज की बोली, जिस को साहित्यिक रूप “ब्रजभाषा हैं। दिल्ली से छोट्यै लाइन पकड़ो और आगे जरा ही बढ़ो, तो रेवाड़ी से राजस्थानी शुरू हो जाती है । पुंविभक्ति के साथ कृदन्त-बहुल माथुर ‘राजस्थानी । गुड़गाँव' खड़ी-बोली, ब्रजभाषा तथा राजस्थान के भिवा नै ही गुड़-जैसा मधुर हो गया है। उधर भरतपुर-जयपुर के क्षेत्र ब्रह और राजस्थानी की बोलियों को मिलाते हैं। वह व्रत की ओली राजस्थानी से ‘हे’ ग्रहण करती है। इधर ‘गुड़गाँव के पास बह खड़ी बोली में भी प्रभावित हो जाती है। य, हिन्दी की ये तीनो बोलियाँ एक दूसरी को प्रभावित करती हुई भी स्वरूपतः पृथक्-पृथङ् हैं। ये तीनों घारा-कृदन्तबहुल हैं। ‘अ’ की गंगा और श्रो' की मुनः ऋः संयम 'त्रिवे' की तुष्टि करता है-'छोरा अयो’ रूसे प्रकट होता है । न ‘लड़का ब्राय की तरह और न ‘लड़को आयो' की तरह ही-लड़का श्रायो' जैदा पृथळू रूप ! वह सब पीछे कह आए हैं। यहाँ तो केवल यह था दिलाने के लिए कि कृदन्तचहुल हिन्दी-बोलियाँ छूट गई, अब तिङन्त-बहुल हिन्दी की प्राच्य’-बलियाँ देखिए । वे तीनो उदीच्य‘प्रतीच्य' हैं। ‘प्राच्य’ बोलियाँ हैं--कन्नौजी, श्रवक्ष,