पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/५८६

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इसी लिए गोस्वामी तुलसीदास का 'रामचरितमानस' पश्चिमी अवधी का महाकाव्य हैं। पूरबी अवघी में कुछ अन्तर अवश्य है और यह अन्तर ही *अवधी' से इस ( पाञ्चाली) को पृथक् करता है ।। | राजस्थानी तथा व्रजभाषा में 'ओ' पुविभक्ति जो ऐस’ ‘मीठो' आदि में है, पाञ्चाली में नहीं है । न यहाँ ‘मीठो पानी है, न ‘मीठा पानी है। यहाँ मीठ पानी' चलता है। परन्तु पश्चिमी पाञ्चाली में भूतकाल की क्रिया में ब्रज का 'ओ' दिखाई देता है - 'लरिकवा अश्रो कि नाई ?'-लड़का आया कि नहीं ? यह 'आ' स्पष्टतः व्रज के 'अयो' का रूपान्तर है। यानी 'यू' का लोप हो गया है; बस ! बहुवचन अाए' यहाँ भी है--‘उइ अपए तौ हैं, तुम मिले ह्यो नाइँ ।' वे आप तो थे, तुम मिले ६ नहीं ! 'मिले यौ' में है के 'ए' का उच्चारण बहुत हलका होता है । स्त्रीलिङ्ग में तो “आई” जैसे रूप हिन्दी की सभी बोलिथों में होते हैं । यह ‘’ ब्रज का प्रभाव है। आगे पूर्बी- कर्नी में, बैसवाड़ी में तथा अवधी में यह नहीं है। “मानस' में ‘आवा' जैठी क्रियाएँ ही हैं। परन्तु भविष्यत् काल की ‘इहै’--प्रत्ययान्त क्रियाएँ पाञ्चाली की ही हैं। ‘मानस में । 'करिहै' आदि के प्रस्तुत प्रयोग अरिहहि श्रादि हैं । तुलसी ने पदों का प्रसार संस्कृत शब्दों में भी कहीं-कहीं कर दिया है-'मैत्री' का *मयत्री' कर दिया है। यह ‘इहै' ब्रजभाषा में भी खूब है। ‘इहै' के है । इटा कुर और बची ‘इ' को ई” बना कर यह एक पृथकू भविष्यत्-प्रत्यय है*भाभी कि न मानी’ ! माने गा कि न माने गा | ब्रज की बोली मैं तो गोशे’ गी' ही क्का चलन है; पर साहित्यिक प्रभाषा भैइहै' का खूब प्रयोग है । सूरदास जैसे महाकवियों ने भी इहै' का प्रयोग क्रिया है । गौ, गे; गी में कृदन्त-छाया है। पुल्लिङ्ग--स्त्रीलिङ्ग में रूप बदलता है; पर इहै' सर्वत्र एक-सा रहता है----“लरिका पढिहैं 'विटिया पदि हैं। बचनभेद तथा पुरुष-भेद तिङन्त-क्रिया में होता ही हैं--पढ़ि है-पढिहैं और *पढ़िहौ'--'पहिौं ' आदि ।। पाञ्चाली में 'उ' पुंविभक्ति दिखाई देती हैं, जो ‘श्रो' का ही घिसा हुआ रूप है । ‘घुरु’--‘आँगनु' आदि पद चलते हैं। यही “उ' अवघी में भी हैं। इस ने व्रज को भी प्रभावित किया है। ब्रज में भी घर’ को ‘वस' जैसा बोलते हैं। परन्तु जहाँ खड़ी बोली में ‘अ’ और व्रजभाषा-राजस्थानी मैं ‘श्र विभक्ति लगती है, वहाँ इस ‘उ' का प्रयोग नहीं होता । मीठा पान “मीठो पानी' की जगह ‘मीई पानी न हो गा-“मीट पानी' रहे । जहाँ लड़ी