पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/५८८

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, ङ्ग रूप ‘गै भै’ भी समान । अन्यत्र 'ई' 'आदि। धातु-रूप हिन्दी फ्री अन्य बोलियों की तरह पाञ्चाली में भी 'आब'-'सोव' जैसे हैं। प्रत्यय ‘ई सामने आने पर “ब” उड़ जाता है । अवा-‘श्राई ।। अपभ्रंश-साहित्य में जो ‘उ’ दिखाई देता है, उस से कुछ अनुमान ‘किया जा सकता है। ऐसा जान पड़ता है जि जब कन्नौज-साम्राज्य तारूण्य पर थी, तो वहाँ की जनभाषा ने व्यापक साहित्यिक-भाषा का रूप ग्रहण कर लिया था। देश भर में उसी ( कन्नौजी या पाञ्चाली ) में लोग साहित्यिक रचना करते थे । प्रादेशिक प्रभाव पड़ता ही हैं। व्यापकता के कारण उस अपभ्रंश को ‘लोक भासा' कहते थे, कन्नौजी नहीं; जैसे कि आज हम अपनी राष्ट्रभाषा को • ‘मेरठ', या कौरव आदि नहीं.कहते । महापण्डित राहुल साँकृत्यायन का भी यही मत हैं। पाञ्चाली के प्रयोग-वैशिष्ट्य पर हम यहाँ कुछ अधिक न कहें गे; क्योंकि इस की अद्यावथा या मध्यावस्था में चाहे जो साहित्य बन गया हो, अाधुनिक रूप में कोई साहित्य इस में नहीं। बना ! हाँ, तुलसी के रामचरितमानस' जैसे अन्थों को इस पाश्चाहीकी चीन जरूर कह सकते हैं। पाञ्चाली, बैसवाड़ तथा अवधी में उतना ही अन्तर है, जितना ब्रजभाषा, ग्वालियरी तथा बुंदेलखण्डी में; या कुरुजनपद तथा कुरुजाङ्गल की भाषा में। अवधी का विस्तार से परिचय श्रागे हम दे | एक विशेष बात पञ्चाली में वह दिखाई देती है कि मध्यम-पुरुष तथा उत्तम-पुरुष सर्वनाम का एकवचन में प्रयोग नहीं सुनाई पड़ता है खड़ी बोली में -- “तू करता है? “तुझे मैं ने देखा' 'तेरा काम ठीक' जैसे प्रयोग होते हैं । ब्रज में तू कहा फरै गो ?? तेरी कहनो कहा हैं जैसे प्रयोr होते हैं। मैं जाऊँ ग’ मेरा काम हैं और मैं जाऊँ गो’ ‘भोकै ( सोझै, मय) कामु है ऐसे व्रज में भी । अवघा में मैं अरु सो-कोर हैं' चलता है । चुघेलखण्डी और बँदेलखण्ड में भी एकवचन चलता है; परन्तु पाञ्चाली में में तू जात हैं' ( या ‘जाति है ) 'मैं जैहों आदि प्रयोग नहीं सुन पड़ते ! *तुर्म का करत हौ” “हम न जैन’ ( या, ‘न जैवे’ ) जैसे बहुवचन ही चल हैं। हमार घरू' 'तुम्हार कामु' इस तरह संबन्ध में तथा विभिन्न कारकों में रूप चुलते हैं । यह बात विशेष ध्यान देने की है। अंग्रेजी में जैसे शिष्ट प्रयोगों में 'यू' बहुवचन ही चलता है, इस का एकवचन नहीं; उसी तरह पाञ्चाली में तुम चलती है; 'तू' नहीं। परन्तु अंग्रेजी में उत्तम पुरुष का