पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/५८९

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एकवचन चलता है; पाञ्चाली में नहीं। ‘इम’ ‘हमैं हमार' जैसे बहुवचन प्रयोग ही सुने जाते हैं। भाववाचक संज्ञा प्रायः एकवचन ही रहती है और इस लिए इस का एकवचन चलता है-'अरे बुढ़ापा तोरे मारे” • • । भविष्यत् काल ‘इहै' प्रत्यय का घिसा-बढ़ा रूप 'ई' प्रत्यय भी बहुत दूर तक चला गया है। काशी से शुरू हो कर बिहार के बहुत बड़े भारी तक *भोजपुरी चलती है। इस भोजपुरी में भी 'ई' प्रत्यय हैं—पुल्लिङ्ग-स्त्रीलिङ्ग में समान । ३ घ ) अथी का परिचय उत्तर प्रदेश के एक भाग में खड़ी बोली' चलती है, मेरठ आदि दोतीन जिलों में; जो उर्दू-रेखतः आदि नामों से देश भर में फैली और फिर विदेशीपन दूर कर के जो हिन्दी नाम से आज प्रसिद्ध है। इसी उत्तर प्रदेश के एक भर में व्रज' है, जहाँ की “बोली' ने साहित्यिक रूप प्राप्त कर के महाकवि सूरदास जैसे रत्न देश को दिए और जो किसी समय देश की सामान्य साहित्यिक भाषा थी। ऐसी विशेषता कि देश भर की सामान्य साहित्यिक भाषा बन गई-किसी की आज्ञा से किसी पर लादी नहीं गई थीस्वतः सब ने सिर-माथे लिया था । उत्तर-प्रदेश का ही एक भाग ‘अवधू है । अवध की बोली 'अवधी' । अवधी बोलने वाले दो करोड़ जन हैं। अवधी में ही मलिक मुहम्मद जायसी झादि मुसलमान फकीरों ने प्रेम-काव्य लिखें हैं; पर वे सब अवधी के तारे-चाँद ही हैं । सूर्य को एक तुलसी ही प्रकट हुए, जिन के रामचरितमानस' ने अवधौ को संसार भर के सभ्य देशों में पहुँचा दिया ! संस्कृत से हिन्दी में साहित्य आता है; पर अवधी‘मानस' का संस्कृत में भी अनुवाद हुआ ! अंग्रेजी जैसी समृद्ध भाषा में *मानस' का अनुवाद हुन्नी और बीसवीं शताब्दी को उचराद्ध जब आधा बीत चुका है और रूस का ज्ञान-विज्ञान संसार को जब चकित कर रहा है, तब रूसी भाषा ने अवधी का यह मधुर प्रसाद 'रामचरितमानस प्राप्त किया है ! रूस के महान् साहित्यकार श्री बारानिकोव ने मानस' का रूसी भाषा में छन्दोबद्ध अनुवाद किया है, जो प्रकाशित हो चुका है। मुझे पता नहीं कि अन्य किस भाषा को इतना अन्तरराष्ट्रीय महत्त्व मिला है। संसार को यह अद्वितीय ग्रन्थ है, 'रामचरितमानस !