पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/५९०

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साहित्यिक अवधी अवधी एक व्यापक भाषा है; परन्तु कई जिलों में कुछ-कुछ रूप-परिवर्तन है। थोड़ी-थोड़ी दूर पर भाषण में कुछ न कुछ परिवर्तन होता रहता है। इन अवान्तर ‘बोलियों का पृथक्-पृथक् विश्लेषण अलग चीज है । हम यहाँ साहित्यिक अवधी पर ही विचार करें ये, जिस का मोहक रूप गोस्वामी तुलसीदास ने हमारे सामने रखा है। उत्तर प्रदेश की बैसवाड़ी' तथा ‘पाञ्चाली' भी अचधी से प्रभावित हैं; या इन से अवधी प्रभावित है। प्रक भाषा से जैसा मैले बुन्देलखण्डी या ग्वालियरी' बोली का है, वैसा ही समझिए। परन्तु साहित्यिक भाषा का रूप तो ऐसा हो जाता है कि उसे किसी भी 'बोली' का पूरा प्रतिबिम्ब नहीं कहा जा सकता । एक अलग रूप हो जाता है; यद्यपि वह निराधार नहीं होता। राष्ट्रभाषा का मूल ‘खड़ी बोली' है; ब्रजभाषा का व्रज •की 'बोली' और अवधी ( साहित्यिक भाषा) का मूल अवध की 'बोली' है। इसी लिए तो इन के वैसे नाम हैं। अवध” तथा ‘ब्रज' का धार्मिक महत्त्व भी है—रामकृष्ण के संबन्ध से। अवघी तथा ब्रजभाषा कहने में एक गौरव सामने अतिा है; परन्तु ‘खड़ी बोली के क्षेत्र का पुराना नाम 'कुरुजनपद है और ( दुर्योधन छादि ) कौरवों को लोग अच्छी दृष्टि से नहीं देखते ! इसी लिए इस का कौरवी’ नाम न पड़ा ! मेरठ डिवीजन के जिले ‘कुरुजनपद हैं। परन्तु 'मेरठी बोली’ नाम इस लिए नहीं पड़ा कि वह अति संकुचित हो धावा ! सो, खड़ी पाई के कारण खड़ी बोली नाम पडू मया। परन्तु इन ‘ोलियों के रूप में और इन के साहित्यिक रू में कितना अन्तर है ! मैं अपनी छात्रावस्था में सुना करता था कि हिन्दी के एक बहुत पुराने कवि शंभू' या 'स्वयंभू' हो गए हैं, जिन के ग्रन्थों का पता नहीं चलता है बहुत दिन बाद महापण्डित राहुल सांकृत्यायन ने अनेक सिद्ध की काय प्रकट की और महाकवि स्वयंभू को भी वे सामने लाए। स्वयंभू का समय ईसवी सन् की आठवीं शताब्दी ठहरता है। इन्हों ने कितने ही अन्र्थों की रचना की है, जिन में एम-चरित' या रामायण’ सब से अधिक बड़ी तथा महत्त्वपूर्ण रचना है। राहुल जी का अनुमान है कि गोस्वामी तुलसीदास इनकी रामायण से अवश्य प्रभावित हुए हों गे और प्राकृत ले हरिचरित बखाने में इन्हीं की श्रोर उन का संकेत है । वर्णनशैली देखते भी इस