पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/५९७

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| मैं और मेरा, तू और तेरा, यह सब साया है । 'तुम' को “तुम्ह' भी हो जाता है। सो’ का बहुवचन में ‘ते’ हो जाता है-'ते जनमे कलिकाल कराला' वे इस कराल कलियुग में पैदा हुए हैं ! यानी ‘बह' की जगह 'सौ' और 'वे' की जगह ‘ते’। परन्तु सर्वत्र एकवचन में ‘सो नहीं है। 'हि' विभक्ति लगने पर सो’ को ‘ते’ हो जाता है, एकवचन में । बहुवचन में तिन होता है और हि' विभक्ति की ‘इ’ को ‘अ’ हो जाता है, साथ ही 'तिन' के अन्य स्वर कई लोप हो कर ‘तिन्ह’ हो जाता है। जो' का बहुवचन 'जे' होता है; परन्तु ‘हिं' विभक्ति लगने पर एकवचन में भी 'जे' होता है-'जब जेहि जतन जहाँ जेहि पाई जब जिस यत्न से जहाँ जिसने पाई । खड़ी बोली में भी ‘लड़के बहुवचन; परन्तु विभक्ति लगने पर एकवचन में भी आ’ को ‘ए’-- ‘लड़के को', 'लड़के से' आदि । 'बो' के साथ 'सो' और जेहि' के साथ “तेहि आता है; परन्तु साधारण स्थिति में 'वह' का रूप ओहि भी देखा जाता है। कौन' की जगह कवन’ प्रायः चलता है और स्त्रीलिङ्ग में कवनि' हो जाता है। ‘हू' के साथ मिल कर कवनिउ रूप हो जाता है। ‘हू' के हु’ का लोप और ह्रस्वता । ‘खड़ी बोली में कौन' उभयत्र रहता हैं । “कौन' के आगे *हू' का ऊ आने पर सृघि हो जाती है, भोजपुरी में---‘कौनौ ठगवा गठरिया लूटल हो ।' विशेषणों के संबन्ध में मोटी बात वही कि पुंविभक्ति (r) यहाँ प्रायः नहीं है। ‘भला-बुरा व्रजभाषा में हो जाएगा-भलो बुरो' । परन्तु अवधी में न भला न “भलो' | यहाँ ‘भल' हो गई । “भल-पोच'--भला-बुरा । “भला की जगह भल' का प्रयोग है; पर ‘बुरा' की जगह ‘पोच' । इस की कारण है। ‘बुरा' की पुविभक्ति हटा कर अवध में प्रयोग न हो गा; क्योंकि वैसा करने से वह पद् अवध में अश्लील हो जाएं गा | इसी लिए भल पोच' का प्रयोग तुलसी ने किया है । अन्यत्र ‘छोटा-बड़ा अादि ‘छोट’-बड़' जैसे रूपों में चलते हैं---को बड़ छोट कहत अपराधू-कौन बड़ा और कौन छोटा, यह कहना-समझना एक अपराध है । | सर्वनामिक विशेषणों में भी पुंबिभक्ति नहीं है। ऐसा खड़ी बोली में ऐसो ब्रजभाषा में और ‘अस’ अवघी में बड़े छोट' आदि को स्त्रीलिङ्ग में ‘बड़ि छोटि जैसा रूप मिल जाता है; परन्तु अस' जस’ ‘तस’ ‘कस’ आदि प्रायः एकरस रहते हैं