पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/५९८

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'जस दूलह तस बनी बता’ जैसा दूल्हा, वैसी ही बरात बनी। बहुवचन में कोई परिवर्तन नहीं होती । क्रिया-विशेषण के रूप में भी अस' कस’ आदि का प्रयोग होता है। ‘खड़ी बोली में क्रिया-विशेषण के अ’ को ‘ए’ हो जाता है--‘ऐसे करो' । अवघी में सीधे “अस करहु । परन्तु कहीं-कहीं ‘भलो जैसे प्रयोग भी मिलते हैं, जब साथ में विशेष्य न हो ---‘भलो भलाइहि पै लहै'। यह ब्रजभाषा की झलक है। कहीं खड़ी बोली' की (।) पुंविभक्ति भी तुलसी की भाषा में देख सकते हैं-जानि न जाइ निसाचर-माया ! कामरूप केहि कारन आया।' 'या' में प्रकृति-प्रत्यय और पुंविभक्ति, सब कुछ खड़ी बोली’ का है; ‘माया' के साथ तुक मिलाने के लिए । अवघी में वा' होता है। कहीं-कहीं विशेषण भी खड़ी बोली के (अकारान्त ) रखे हैं--- साधु अवज्ञा कर फल ऐसा, जरई नगर अनाथ कर जैसा ।" अवधी के धातु-रूप अवधी में घातु सब प्रायः वे ही हैं, जो हिन्दी की अन्य बोलियों में । बहुत कम, कुछ 'अपने' पृथक् धातु भी हैं। उदाहरण के लिए बचने की लगृह ‘उबरना' । 'उबरा सो जनवासेहिं आवा’---जनक का दिया हुआ सबू साज-सामान दशरथ ने गरीबों को बाँट दिया और जो बचा (उबरा ), सो जनवासे आया। इसी तरह ‘भेजा' की जगह पठवा अवधी में चलता है। ‘पठवा जनक बुलाई-जनक ने बुला भैया ।। | जो धातु समान हैं, उन में ( फहीं एकाध में ) कुछ परिवर्तन भी हो गया है। पहले मैं 'श्रावा’ को ‘या’ का ही परिवर्तित रूप समझता था । परन्तु जब अवधी के स्वरूप पर कुछ अधिक ध्यान गया, तो वह बात गलत जान पड़ी । श्रावा' स्वतंत्र निष्पत्ति है। श्रीया का ही परिवर्तित रूप थह नहीं है । धातु-भेद भी हो गया है--एक ही धातु के दो रूप हो गए हैं। खड़ी बोली में ‘श्रा' धातु है, जिस से यु' प्रत्यय तथा पुंविभक्ति के योग से *आया' रूप बनता है। परन्तु :अवधी' में अव धातु है, “ नहीं । वर्तमान काल में 'ना' का 'जाहि' रूप होता है; पर ( ‘आता है के लिए) *अहि' नहीं होता। इस लिए नहीं होता कि सत्तार्थक ‘अह' घातु की भी