पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/५९९

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एक रूप यहाँ ‘श्राष्ट्रि’ होता है । अहि'-'है' । अहि, अहइ, अहै और अहि, ये सब रूप यहाँ प्रयोग में आते हैं। इस लिए अवधी ने आने के अर्थ में ‘श्राव' धातु रखी----ऋrवहि, श्रावै, आवा आदि । ' प्रत्यय परे हो, तो ‘ध’ को ‘य' हो जाता है—ायउ। इसी तरह ‘सोव’ रोव” अादि धातु-रूप हैं; ब्रजभाषा में भी और पंजाबी में भी अश्वत है, सोवत है--आउँदा है, सोचँदा है । इन सब के बीच में खड़ी बोली है, जिस ने ‘अ’ सो' ' जैसी धातुओं को पसन्द किया; यह विचित्र बात है ! सो, अवधी में 'व' धातु है और यहाँ भूतकाल में य' प्रत्यय भी नहीं होता, केवल 'अ' होता है, सो भी वैकल्पिक । कह-कही, वि-वा, लाव-लावा श्रादि वैक़ल्पिक रूप होते हैं । यानी 'अ' प्रत्यय विकल्प से लुप्त हो जाती है । | भूतकाल में कई धातुओं को आदेश-प्राप्त रूप मिल जाते हैं। खड़ी बोली में तो कहीं एकाध जगह 'जा' जैसी धातु को 'ग' जैसा आदेश होता है; पर व्रजभाषा में है’ को ‘भ हो जाता है-सबेरो भयो । अवधी में भी भ’ होता हैं.भा भिनसारा'.-सबेरा हो गया। इसी तरह ‘जा को ‘’ हो जाता है—‘सत जोजन गा लंका पारा' । गा’--गयो । अजभाषा में गयो' और खड़ी बोली में ‘गया। दोनो जगह थह य? प्रत्यय है—पुंविभक्ति में भेद । अवधी में पा' तथा 'भ' से भूतकालिक *श्र प्रत्यय और सवर्णदीर्घ-एकादेश-~~-गा' 'भा' । श्रादेश' पारिभाषिक शब्द है। 'ह' का विकास भ’ है; यह मतलब नहीं। 'ह' या अह' की जगह ‘भवति' की 'भ' चलता है, यह मतलब । | आप कह सकते हैं कि यह जो भूतकाल में 'अ' प्रत्यय की कल्पना तुमने की है, उसी के कारण ह्रस्व ‘म’ ‘भ' का श्रादेश कह रहे हो; नहीं तो सीधे ‘या’ ‘भा श्रादेश स्पष्ट है ।। इस पर हम विचार कर सकते हैं। देश स्वस्व तथा 'भरूप, ही हैं । तभी तो खड़ी बोली में पाया और व्रजभाषा में ‘गयो-भयो’ रूप होते हैं। यदि दीर्घान्त आदेश होता, तो वहाँ गायो’ भयो’ रूप होते । परन्तु 'गायो’ और ‘भायो’ रूप अन्य धातु के भूतकाल में बनते हैं-'सखी नै सोहर नीको गयो’ और ‘मोइन मेरे मनः भायो' । खड़ी बोली में भी ‘माया' अन्य धातु का रूप है ! इसी लिए 'ग' तथा भ’ धातु लिए । अवधी तो हिन्दी की ही एक ‘बोली' है न ! तब धातुओं की एकरूपता क्यों