पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/६००

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बिगाड़ी जाए ? अवधी के ही एक अञ्चल में गवा’ और ‘भवा’ रूप बोले जाते हैं--‘राम रावा की नाई–राम गया कि नहीं ! ‘नहीं' का 'नाहीं? हुआ और फिर ‘ह लुप्त हो कर ‘नाईं। इसी तरह का भवा जो कहि दिहिन कोऊ न आय !' क्या हुआ, जो कह दिया कि कोई नहीं है। ‘भवा' हा । श्रा-है। अहि, श्रा, प्राय । “g’ को ‘य होता रहता है। तो, अवधी के ही एक अञ्चल में ‘गवा' भवा' बोला जाता है; ‘गावाभावा' नहीं । ‘गोबा भावा' तो याया भया' के प्रतिरूप हैं। निःसन्देह ‘रावा' पर 'गया' का प्रभाव है। ठेठ अवधी और खड़ी बोली के बीच में ( लखनऊ के इधर-उधर ) गवा' “भवा’ रूप चलते हैं। अवघ से पश्चिम (उत्तर पाञ्चाल ) में ( 'इ' को 'इ' की तरह ) य’ को ‘व हो जाता है। अवधीसाहित्य में 'गा' भा' का चलन है। तो, जब कि 'गया' में ‘ग' है, ‘गयो’ में 'ग' है और गवा' में 'ग' है, तव गा' में भी ‘ग' धातु न्यायसंगत है कि नहीं ? इसी तरह ‘भयो” तथा “भवा' को देखते, “भा' में 'भ' धातु है । जब ‘ग' धातु है, तो उस के भूतकालिक रूप में ‘अ’ प्रत्यर्थ की • कल्पना तर्कसुभ्मत है कि नहीं ? यह ‘अ’-प्रत्ययान्त रूप स्त्रीलिङ्ग में 'हे'-कारान्त हो जाती हैविपदा'-विपत्ति गई। भै राति–रात हुई । परन्तु बहुवचन में 'भै’ ‘गै' नहीं, “भई-गई, रूप ही होते हैं। अनेक स्वरों की धातु हो, तो स्त्रीलिङ्ग में ईकारान्तं ही रूप होते हैं-'पाती लिखी बनाइ'। ‘लिखा’ को स्त्रीलिङ्ग लिखी' । स्त्रीप्रत्येब ‘ई परे होने पर (खड़ी बोली तथा ब्रजभाषा की ही तरह) पुंप्रयोग के अन्य स्वर का लोप-पढ़ा-पढ़ी। यदि पुप्रयोग में 'इ' हो, तो उस का भी लोप हो जाता है—ावा-आईभाषा-भाई’। कभी-कभी ‘ग' तथा 'भा' के स्त्रीलिङ्ग रूप भी ईकारान्त देखे जाते हैं---‘ाई भई’ ! यानी गा’ को ‘ग' तथा ‘भा को “भ हो जाता हैं--प्रत्यय का 'अ' लुत हो जाता है । 'लो' का मतलब 'श्रदर्शन' ही हैं। वैसे उस की अदृश्य सचा है, तभी तो भूतकाले प्रतीत होता है। ‘कर' 'दे' तथा 'ले' जैसी धातुओं के भूत काल में ‘कीन्ह’ दीन्ह' तथा ‘लीन्ह' जैसे रूप हो जाते हैं, परन्तु विकल्प से तिङन्त में और नित्य कृदन्त में । मूलतः धातु हैं ‘कर’ ‘दे” तथा “ले? अादि । वर्तमान काल में करहि *देहि' तथा 'लेहि जैसे प्रयोग होते हैं। करहु, देहु, लेहु अाशा आदि में । इस से स्पष्ट है कि धातुओं के मूल रूप में ही हैं, जो ‘खड़ी बोली' तथा