पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/६०

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बोली' कहने लगे होंगे । परन्तु इस चीज को न समझ कर कई विद्वानों ने लिख दिया कि “खरी बोली' का रूपान्तर खड़ी बोली है ! यह तो हुई कवि जनों की बात । आगे चलकर कवियों ने ही इसे लोच- दार और मधुर-कोमल बना लिया । इधर के काव्य देखिए न ! परन्तु 'खड़ी बोली' नाम भाषा-विज्ञान की दृष्टि से भी खरा उतरता है । मीठा जाता’ ‘खाता' आदि में जो खड़ी पाई अाप ( अन्त में ) देखते हैं, बह हिन्दी के अतिरिक्त इसकी किसी भी दूसरी ‘बोली' में न मिलेगा । ब्रज में मीठो’ और अवधी में “मीठ’ चलता है-“मीठो जल” मीट पानी' । इसी तरह ‘जात है' खात है' आदि रूप होते हैं । केवल कुरुजनपद में ही नहीं, यह खड़ी पाई मागे पंजाब तक चल गई है-मिट्ठा पाणी जाचँदा है'। , इस खड़ी पाई के कारण इसका नाम लड़ी बोल’ बहुत सार्थक है । | आप जानते हैं, यह बड़ी पाई मूलतः क्या चीज है ? यह संस्कृत के विसर का विकास है। ‘उड्ः’ को ‘उषा' होते आपने देखा ही है । विस का उच्चारण 'इ' के समान होता है, इसीलिए विदेशी ज्याद’ ‘तमन्न’ आदि शब्द हिन्दी में ज्यादा तमन्न’ बन जाते हैं । कुछ दिन पहले तक लोर ‘ज्यादः तमन्नः' तर्जुमः' यों विसर्ग इन विदेशी शब्दों में भी दिया करते थे। इसके विरुद्ध बहुत कुछ लिखा-किया गया, तब अब प्रवाह बदला है । लोग ‘हे’ लिखने लगे हैं, यद्यपि छः अभी तक लिखे चले जा रहे हैं । छह शुद्ध है, “छः गलत है । कहा जा रहा था कि खड़ी बोली की यह खड़ी पाई विस की विकास है। "अ' का भी कंठ स्थान है और “ह' का तथा विसर्गों का भी । इसलिए "ह' तथा विसर्गों की जगह कभी-कभी ‘अ’ ले लेता है। फिर ‘सव-दीर्घ होकर

    • बन जाता है। उषः' से उषा तया तर्जुमः' में तर्जुमा' इसी विधि से

बन गये हैं। | हिन्दी में खड़ी पाई की एक व्यवस्था है, अन्धाधुन्धी नहीं है । सदा पुलिंग-एकवचन में इसके दर्शन होते हैं। ऐसा जान पड़ता है, जो पड़े की बात नहीं, निश्चय है कि संस्कृत के पुल्लिंग एकवचन ( बालकः ) आदि के विस का विकास हिन्दी ने श्रा' (T) के रूप में किया है। हम इस श्रा’