पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/६१

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( १६ ) विभक्ति को पुं-प्रत्यय' भी कहते हैं ! हमने इसे ‘पुं-विभक्ति' नाम दिया; क्योंकि यह एक संस्कृत-विभक्ति का विकास है। इस खड़ी पाई को “पुंविभक्ति' कहने में कोई अड़चन तब भी नहीं आ सकती, जबकि इसके आगे ‘को’ ‘ने श्रादि विभक्तियाँ लग जाती हैं । हिन्दी में एक विभक्ति के आगे दूसरे विभक्ति लगाने की पद्धति है--‘इनमें से एक छाँट कर निकाल लो ।' मैं' के अनन्तर से विद्यमान है, इसलिए में कई विभक्ति कहना कौंन बन्द करता है ? एक विभक्ति के आगे दूसरी विभक्ति या शब्द लगाने की यह चाल प्राकृतों में भी है । पुत' ( पुत्र ) का तृतीया- बहुवचन रूप 'पुतेहिं होता है और फिर इस ‘हिं को सामान्य विभक्ति मान कर इसके झा 'तो' या दो' लगा कर पंचमी का एकवचन बनाया जाता है---*चेहंतो, पुत्तेहिंद-पुत्र से' ।। पुलिंग एकवचन के ‘बालकः अादि के विसग से इसका विकास हमने माना है और हिन्दी में पुलिंग एकवचन में ही यह अपने असली रूप में रहती हैं-‘खड़ी पाई” आपको पुल्लिंग एकवचन में ही मिलेगी । पुंस्त्व प्रकट करने के लिए सर्वत्र इसकी सचा रहती है, बहुवचन में भी; परन्तु वहाँ ( बहुत्व का मान-गौरव ) पा कर कुछ झुक जाती है, नम्र हो जाती है- लड़के आते हैं। संज्ञा में तथा क्रिया में, दोनों जगह उस खड़ी पाई ने अपना रूप बदल लिया है, झुक कर दूसरे रूप में आ गई है । ' में जो कृडूड़ाद थी, वह में नहीं रही है। यह गौरव प्राप्त करने का फल है।

  • लड़के' में पुंस्त्व तथा बहुत्य, दोनों ही तत्त्व प्रकट हैं। पुंस्त्व तो इसलिए

कि यह ‘ए’ उस ‘अ’ का ही रूप है और बहुत्व इसलिए कि एकत्व प्रकट करनेवाला रूप नहीं है, बहुत्व-व्यंजक ‘ए’ सामने है। से बहुत्व प्रकट करने की रीति संस्कृत-प्राकृत से आई है---ते, चे, सर्वे-जैसे रूप से तथा प्राकृत में इनके छायारूप से। | एकवचन में भी यह खड़ी पाई ‘ए’ बन जाती है, जबकि कोई दूसरी विभक्ति सामने आ जाती है--लड़के ने लड़के को । यहाँ इस रूप में आ जाने पर भी इकत्व बना रहा है-‘ए’ से बहुवचन का भ्रम कभी नहीं होता, इसलिए कि ने’ ‘छो' श्रादि विभक्तियों की सत्ता में, बहुत्व प्रकट करने के लिए, हिन्दी ने बीच में दिक्करण लाने की स्थायी व्यवस्था कर दी है--

  • लड़कों से लड़कों को' । ‘लड़के आते हैं, ऐसे स्थल में खड़ी पाई की सत्ता