पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/६०९

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हो जाती है । कर्तरि प्रयोग हो, तो कर्ता कारक में नियमतः निर्विभक्ति संज्ञाएँ आती हैं । अकर्मक-सकर्मक सभी प्रयोग में कर्ता कारक निर्विभक्तिक रहता है. सभी काल में और विधि-आज्ञा आदि में भी ! म झरहि’ ‘राम करेउ’ ‘राम कर इ' राम कीन्ह बड़ फाज' आदि। प्रयोग निर्विभक्ति ही हों गे । यहाँ विभक्ति का प्रयोग गलत हो ग–'महि। करहि' जैसे प्रयोग न हों गे । हाँ, अव्यय 'ही' का प्रयोग हो--राम ही करता हैं' कहना हो, तब *रामहि करहि अवश्य कहा जाए गा । सो, यहाँ ‘रामहि' में 'हि' विभक्ति नहीं; 'ही' अव्यय का ह्रस्व रूप हैं। सर्वनाम भी कर्तृ-कारक में निर्विभक्तिक ही रहते हैं---‘जो करहिं सो जाहि' आदि । कृदन्त कर्तृवाच्य अकर्मक क्रियाएँ भी निर्विभक्तिक कर्ता के साथ आती हैं-‘जो जाग’ ‘सो नहिं सोवा' । गत्यर्थक सकर्मकों का कर्ताजो वा एहि लोक' । अन्य धातुओं के कर्मवाच्य या भाववाच्य प्रयोगों के साथ जो, सो, को श्रादि सर्वनामों को जेहि तेहि” “केहि जैसे रूप मिल जाते हैं---‘जेहि कीन्ह अस पापु’ ‘तेहि पाबा परिनामु' 'केहि मोहि अस दुरू दीन्ह आदि । जेहि तेहि आदि में 'हि' विभक्ति स्पष्ट है । जो-सो के. बहुवचन रूप ‘जे 'ते' होते हैं । परन्तु जेहि तेहि' से कभी भी बहुत्व प्रकट नहीं होता । बहुवचन में ऐसी जगह जिन्ह’ ‘तिन्ह' किन्ह' रूप होते हैं“जिन्ह सब सुख दुख दीख'-जिन्हों ने सब सुख-दुख देखा है। जिन्ह पाव राखा तिन्ह नाहीं'- जिन्हों ने पाया, उन्हों ने रखा नहीं । जिन्ह पाई सबै संपदा, ते नर जग बौरान यहाँ ‘संपदा के अनुसार क्रिया ‘पाई है; यद्यपि कर्ता-कारक पुल्लिङ्ग है। राष्ट्रभाषा में जिन्हों ने सब संपदा पाई है | और ‘पावा सखिन्ह परम सुख' में ‘पावा' पुल्लिङ्ग क्रिया है; यद्यपि कर्ता स्त्रीलिङ्ग ‘सखिन्ह' है । स्पष्टतः ये क्रियाएँ कर्मवाच्य हैं। "तेहि पाए भूखन-बसन' यहाँ कत एकवचन है ‘वेहि' और क्रिया पाए' बहुवचन है; कर्म ‘भूवन-बसन' के अनुसार। ‘बिन्ह पावा अति मनु' में कर्ता बहुवचन है--जिन्ह' और क्रिया ‘पावा' एकवचन है, कर्म ( भानु' ) के अनुसार । सो; ये कर्मवाच्य कृदन्त क्रियाएँ हैं; क्योंकि पुल्लिङ्ग-स्त्रीलिङ्ग का • भेद इन में रहता है---‘तिन्ह तब पाई बिपति मग्र’ और ‘तिन्ह पाका बिस्रामु मग' । भाववाच्य प्रयोगों में क्रिया सदा पुल्लिङ्ग–एकवचन रहती ई-अननि जानकिहिं तुरत बोलावा--मी ने जानकी को तुरन्त बुलाया।