पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/६१०

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कर्ता और कर्म स्त्रीलिङ्ग हैं; पर क्रिया पुल्लिङ्ग--एकवचन । अन्तर यह कि 'ने” विभक्ति नहीं है और क्रिया-रूप में अन्तर है। धातु वही, पद्धति भी वही ।।

ऐसा जान पड़ता है कि जिन्हों ने आदि में अवधी ‘जिन्ह' आदि की छाया है। वर्तमान में कर्तृवाच्य-करत रहत मुनि जग्य'---मुनि यज्ञ करते रहते है। प्रकरण से यही वाक्य भूतकाल को भी अर्थ दे देगा- ‘मुनि यज्ञ करते रहते थे'। 'त' प्रत्यय तो मधु की तरह ‘योगवाह' है । सब जगह खप जाता है। परन्तु हैं यह कर्तृवाच्य’। यहाँ कर्ता में ‘जेहि’ ‘जिन्ह' 'सखिन्ह' जैसे रूप न हीं गे और न फर्म के अनुसार क्रिया का रूप ही पुल्लिङ्गस्त्रीलिङ्ग हो गए ।' 'ने' आदि विभक्तियों की जगह अवधी ‘हि’ से काम लेती है और उस का रूप बहुवचन में ‘न' से मिल कर अकारान्त हो जाता है-'भुनिन्हे कही सोइ बात'। ऐसी स्थिति में 'बो' को एकवचन में 'जे' और 'सो’ को ‘ते’ हों। जाता है---‘जेहि-तेहि । बहुवचन जिन्ह'-'तिन्ह' । राष्ट्रभाषा में लड़का' एकवचन और लड़के बहुवचन रूप हैं; परन्तु 'ने' आदि विभक्तियाँ आगे आने पर एकवचन में लड़का' का लड़के रूप हो जाता है---‘एक लड़के ने कहा था। इसी तरह अवधी में जो एकवचन, 'सो' एकवचन और ‘जे’ 'ते' इन के बहुवचन; परन्तु 'हि' विभक्ति या उस के संक्षिप्त रूप ४' की • उपस्थिति में ‘जो'-'सो' के एकवचन में 'जे'-'ते' रूप हो जाते हैं-'जेहि“तेहि । बहुवचन में 'बो'-'सो' को 'जिन'-'तिन' हो जाता है और अन्त्य अ' का लोप----‘जिन्ह'-'तिन्ह जेहितेहि' के आगे दूसरी विभक्तियाँ भी आ जाती हैं----‘जेहि कर ‘एहि महँ’ और ‘तिन्ह कर' 'जिन्ह महँ' आदि। सो, यह विभक्ति के आगे दूसरी विभक्ति लगाना पुरानी परम्परा है। प्राकृत में हिं' के श्राये *तो लगा कर “हिन्तो जैसा रूप चलता था। अबधी में हि'-'ह' के आगे *कर' आदि । कर्म कारक कर्म कारक में 'हि' का प्रयोग व्यापक रूप से होता है। दीर्घान्त शब्द ह्रस्व हो जाते हैं-लरिकहिं, राजहिं, सभहिं । ‘सुभहिं यो समुझाइ–सभा को समझा कर कहा । यहाँ नियम सब पर एक-सा-संस्कृत शब्दों पर भी ।