पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/६१२

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  • मोरी नहीं । यदि विधेयता अन्यत्र हो, तब अवश्य ‘मोरी भूमि हरी तब तेही जैसा कुछ हो सकता है। खड़ी बोली में मेरे ‘हमारे ‘उनके रामके आदि प्रयोग इसी तरह होते हैं। यानी “के” २’ ‘ने विभक्तियाँ हैं ।

गुरुगृह गयउ तुरत महिपाला; । चरन लागि करि बिनय बिसाला निज दुखसुख सब गुरुहिं सुनाये; फइि बसिष्ठ बहुविधि समुझायेऊ ‘सुनायेउ” तथा “समुझायेउ मैं यथादृष्ट लिख रहा हूँ। “मानस' की विभिन्न प्रतियों में ऐसे शब्दों की वर्तनी विभिन्न रूपों में है। ‘सुनाये प्रयोग खड़ी-बोली' के चलिये पढिये' जैसे प्रयोगों की तरह गड़बड़ है। चलिय' को अवधी ‘चलिश्र’ र ‘चलिए खड़ी बोली में शुद्ध है। व्याकरण की दृष्टि से या तो ‘सुनायउ चाहिए, या फिर ‘सुनाए। यानी ‘इउ' प्रत्यय के 'इ' को या तो ‘ए’ हो गा, या फिर ‘य'.! ये नहीं हो सकता। यह मेरा मत है। गोस्वामी जी ने क्या लिखा है और प्रतिलिपिकों ने तथा 'संशोधक-सम्पादकों ने क्या कुछ किया है; यह मैं नहीं कह सकता है बशिष्ठ ने समझाया । धरहु धीर होइहि सुत चारी; त्रिभुवन बिंदित भगत भय हो । *चारि' का चारी’ चौई बनाने के लिए। हृत्व को दीर्घ इसी तरह अन्यत्र भी मिले गा ।। होगी रिसिद्धिं बसिष्ठ बोलावा; ‘पुत्रकाम’ सुम जग्य करावा ‘श' की अवधी में भी प्रायः सर्वत्र ‘स' के रूप में व्यवहार है और 'जु’ का ग्य' के रूप में । तुलसी से कुछ दिन पहले मलिक मुहम्मद जायसी अवधी के अच्छे कवि हुए हैं। उन्हों ने अखरावट' नाम की एक ज्ञानपुस्तक अवधी में लिखी है। क, ख, ग, आदि अक्षरों के क्रम से ज्ञान-वर्णन झा-करतार चंहिय अस कीन्हा