पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/६१५

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होता; रहता--कौसल्या कहूँ । यही स्थिति ‘महँ’ श्रादि की है। 'हि' की। पृथक् पद्धति है। जा दिन ते हरि गर्भहि अाए; | सकल लोक सुख सम्पति छाए , गर्भहि' में 'हि' अधिकरण कारक में है। ‘जो' का वैकल्पिक रूप ‘जा” है; जेहि दिन में भी होता है । सकल लोक' निर्विभक्तिक अधिकरण, बहुवचन । सुख सम्पति छाए' में छाए’ पुल्लिङ्ग 'सामान्य-प्रयोग है; जैसे नर नारी आए । कह दुइ कर जोरी, श्रस्तुति तोरी, | • केहि विधि करौं अनन्ता !" ‘दुइ यहाँ दोनों के अर्थ में है। मेरे सामने त्रिपाठी जी का संस्करण हैं। सम्भव है, अन्यत्र कहीं दोङ’ पाठ हो। मुझे तो दोङ' ही याद है। ‘दुइ’ दो और दो-दोनो । “दोउ' या ‘दोऊ की जगह खड़ी बोली में दोनो आता है। अवधी फहीं खड़ी-बोली से भी प्रभावित है-भरत सत्रुहन दूनऊ भाई ।' ‘दोनो' की सन्धि तोड़ कर दूनउ' । परन्तु अवधी का अपना प्रयोग है--‘दोऊ’---‘कागभुसुंडि संग हम दोऊ ।' इसी तरह कोई की जगह यहाँ ‘कोऊ है; पर कहीं खड़ी-बोली' की तरह कौन' भी आ जाता है---कौन कौनिउ' | ‘दुई कर जोरी’ से तो जान पड़ता है कि कौसल्या के बहुत हीथ थे, उन में से दो को जोड़ कर उन्हों ने स्तुति की ! गुरु बसिष्ठ कहँ गयेउ हुँकारा; आए द्विजन्ह सहित नृप द्वारा गयेउ’ पर मैं ने विचार प्रकट कर दिया है। सर्वत्र आगे यथास्थित प्रयोग ही लिखने हैं। द्विज्ज अाए' आदि में बहुवचन कर्ता ज्यों का त्यों रहता है; परन्तु कर्मवाच्य कृदन्त क्रिया का जब कत हो, या अन्य किसी विभक्ति का विषय हो, तो ‘न्ह' आगे लग जाता है--‘द्विजन्ह कहा—ब्राह्मणों ने कहा । 'द्विजन्हें सहित'–ब्राह्मणों के साथ । संबन्ध-विभक्ति का विषय है । अनुपम बालक देखिन्ह चाई देखिन्हि जाई-जा कर देखा । कीन्हेन्हि' आदि की तरह भूतकालिक क्रिया।