पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/६१६

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बृन्द बृन्द मिलि चलीं लगाई; सहज सिंगार किए उठि बाई । ‘लोगाई ‘धाई के साथ मेल मिलाने के लिए है। घाई को अनुनासिक रखना ही है । उस के मेल में लोगाई बेमेल बैठता; इस लिए ‘लोगाई अनुनासिक कर दिया गया है। कनक कृलस मंगल भरि थारा, गावत पैठहिं भूप दुआरा । ‘कनक कलस' और 'थारा' अधिकरण कारक में हैं। मंगल' से मतलब है---‘माङ्गलिक द्रव्य' । यह फर्म कारक है। अवघी में 'थार' हैं<थाले । चौपाई बनाने के लिए दीर्घ कर दिया है। महाकवि भूषण ने भी ( ब्रज भाषा में ) थारा' का प्रयोग अधिकरण कारक में ही किया है । ‘दुअरा भी ‘दुर’ का दीर्धान्त रूप है, चौपाई बनाने के लिए। अधिकरण में अवधी साधारणतः दुअरे' रूप रखती है। ब्रजभाषा में 'द्वारे होता है-- पीही हलाहल नन्द के द्वारे' । खड़ी बोली में न ‘दुश्रारे' और न द्वारे । यहाँ ‘द्वार पर चलता है; दरवाजे में चलता है। अवधी के दुआरे में और ब्रजभाषा के द्वारे' में 'हि' (g) विभक्ति अधिकरण कारक में है । संस्कृत में भी ‘द्वारे ही होता है। वहीं समझिए । ‘गावत’ भाववाच्य प्रयोग है-गाते-गाते प्रवेश करती हैं। खड़ी बोली* की बवान्च्य प्रयोगः पुंविभक्ति के साथ एकवचन होता है और 'आ' को “ए” हो जाता है--राम ने गाते हुए प्रवेश किया’ ‘लड़कों ने ( या लड़कियों ने ) गाते हुए ( या गाते-गाते ) प्रवेश किया ।' अवधी में पुंविभक्ति नहीं है; पर भाववाच्य क्रिया रहती हैं उस तरह---पुल्लिङ्ग एकवचन । गत पैठहिं भूप दुर' । झर्वा बहुवचन है । 'पैठईि' आख्यात कर्तृवाच्य तिङन्त है ही। सावति' पाठ हो, तो विशेषण । करि अरविं न्यौछावर करहीं, बार बार सिसु चरनन्हि परहीं । करहिं ( करहीं } यहाँ भूतकाल में प्रयुक्त है। खड़ी बोली' का वर्तमानको लिक त' भी सहायक ( है ) के अभाव में कालान्तर की व्यअना कर देता है-वे वहाँ आरती कर-कर के न्यौछावर करतीं और आर बार शिशु के चरणों पड़तीं ।' 'चरनन्छि’ अधिकरणबहुवचन है। 'हि' विभक्ति