पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/६३१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

परिशिष्ट-२ पंजाबी ‘बोली' या भाषा अन्यान्य ‘बोलियों की तरह पंजाबी युद्यपि हिन्दी की बोली नहीं, क्योंकि वहाँ ‘क’ प्रत्यय नहीं है; पर खड़ी बोली' के बहुत सन्निकट है। इस लिए थोड़ा परिचय लीजिए । “वड़ी बोली” के उद्गम (कुरुजनपद ) से सटा हुआ। 'कुरुजाङ्गल’ प्रदेश है, जिसे ‘हरियाना' या हरियाणा' कहते हैं। यह प्रदेश पंजाब का हिन्दीभाषी अञ्चल' कहलाता है। दिल्ली से परे, अम्बाला जिले के प्रारम्भ तक, यह कुरुजाङ्गल’ है । कुरुजनपद की खड़ी बोली ही किञ्चित् हेर-फेर के साथ 'कुरुजाङ्गल' की 'बोली' है । खड़ी बोली का है यहाँ ‘सै बोला जाता है, जो आगे ( पंजाब में ) फिर 'है' के रूप में हो गया है। कुम्जाङ्गले का एक सिर। राजस्थान से मिलता है, जहाँ 'सै’ को ‘छै' हो गया है। छै’ को भी 'सै' कह सकते हैं; जैसे “छाया' का उर्दू में 'साया'; परन्तु भूलतः 'स' है, ‘छ' नहीं । “अस्' धातु मूल में है, 'अछ नहीं । इस लिए 'सै' का ही छै' होना ऊँचता है ! *स' को 'छ’ अन्यत्र भी हुआ है। अवधी में “तुमहिं अछत को बरनै पारा ।' यह अछुत' अस’ का ही परिवर्तित रूप है--तुम्हारे होते हुए,--‘तुमहिं अछत’ | ‘गढ़वाली’ श्रादि हिन्दी की अन्य बोलिर्यों में भी ‘छ' श्रुत है । | कुरुजाङ्गले से आगे पंजाब है--पंजाबी-बोली का क्षेत्र है। वस्तुतः पंजाबी हिन्दी की एक बोली नहीं, शाखा है; जैसा कि अभी आगे श्राप ‘पंजाबी रामायण के उद्धरणों में देखें गे। सिख-गुरु ने ‘नागरी' में कुछ परिवर्तन कर के शुरुमुखी' नाम की एक अलग लिपि बना ली और फिर आगे इस नई लिपि में ही पंजाबी लिखी जाने लगी । अवधी, मैथिली तथा व्रजभाषा की टक्कर का साहित्य पंजाबी में नहीं है; परन्तु एकदम शुन्य भी नहीं है। पंजाबी के पुराने और प्रसिद्ध कवि एक मुसलमान हैं, जिन्हों ने 'हीर राँझा की प्रेम कहानी का वर्णन किया है, जैसे कि मलिक मुहम्मद जायसी ने अवधी-काश्य पद्मावत' लिखा । गुरु नानक श्रादि सिख-गुरुश्चों की ‘बानी' तो प्रायः ब्रजभाषा में है, पंजाबी में नहीं । दशम गुरु श्री गोविन्द सिंह जी ब्रजभाषा के टकसाली कवि थे। वीर रस की उन की बड़ी अच्छी कवितई