पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/६३२

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. जद, है । उस समय ब्रजभाषा के द्वारा ही अपने विचार सम्पूर्ण भारत में पहुँचाए जा सकते थे । ‘अज्ञा भई अकाल की, तबहिं चलायो पन्थ, सब सिक्खन को हुकुम है, गुरू मानियो ग्रन्थ' इस में तथा नानक दुखिया सुत्र संसार, सुखी सोइ जेहि नाम अघारा' आदि में कोई भी चीज पंजाबी की नहीं है। केवल गुरुमुखी लिपि में लिखने के कारण ही ‘गुरु-वाणी' को लोग ‘पंजाबी' के देते हैं। हम ‘पंजाबी रामायण के कुछ उद्धरण यहाँ दें गे, जिस से “हिन्दी की इस शाखा का स्वरूप सामने आ जाए। वह खड़ी पाई पंजाबी में सर्वत्र आप को मिले गी, जिस के कारण “खड़ी बोली' नाम हिन्दी का पड़ा है। ‘पंजाबी रामायण' कविवर ‘दिलशाद की कृति है ।। शूर्पणखा की बातें सुनने के बाद रावण का वर्णन है ले सुण राव जदों हाल सारा, बिंचे दिल दे होण हैरान लेगा । सुणी भाइ दी मौत भी नाल जदों, हो ग़मगीन फिर अआँसू बहा लग्गा । ‘लिया' की जगह लेआ है; इसी तरह गया' की जगह मेश्रा आदि है। “खड़ी पाई ज्यों की त्यों है । न’ को ‘ए’ कर देने की प्रवृत्ति कुरुजनपद में भी है, हरियाणे में भी और राजस्थान में भी । “भगिनी का ‘भैण' हो जाता है। भाइयों की'-.-भाइ दी। यानी क' की जगह ‘द संबन्ध-प्रत्यय है; परन्तु पुर्विभक्ति ‘अ’ ( ३ ) वही है और उस का चलन भी वैसा ही—राम का--राम दा, राम के–मि दे, राम की-राम दी । पंजाबी में श्रओं की जगह भी ‘ाँ हैं-भाइ दी। इयं भी नहीं, यद्यपि “इ” हो गया है। ‘लगा' की जगह लग्गा । नासिका' का तद्भव रूप ‘नाक है; इस लिए खड़ी बोली में तथा अवधी-ब्रजभाषा आदि हिन्दी की अन्य सभी बोलियों में यह स्त्रीलिङ्ग ही है। परन्तु भदने पंजाब की भाषा में यह पुलिङ्ग है :-- मैरी भैन दा भी कट्टै नक उसने श्रोह हुण दुनिश्रा थीं समझो जान लग्गा । भैरे झोर हूँ शायद ओह जाणदा नहिं, | ताहीं नाल मैरे इत्थ पाण लग्गा । यहाँ ‘भैन' है, कहीं मैण रहता है। मेरी-मेरे यहाँ :भैरी?--भैरे' होते