पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/६३३

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हैं । 'ने' का कहीं ही प्रयोग होता है । 'ले सुण रावण जदों-जब रावण ने सुन लिया। यहाँ 'रावण' ने-रहित है; परन्तु “उस ने' में ‘ने स्पष्ट है। साथ' के अर्थ में पंजाबी अव्यय ‘नाल' है। छाने लगा'...जाण लग्गा व्रजभाषा में भी जान हैं। जैसे ही प्रयोग होते है-पुंविभक्ति-रहित ।

विदेशी भाषाओं के ज’ था ' अदि को पंजाबी में प्रायः ‘झ' हो। जाता है---जोर-झोर', हजार-झार', जरा-झरा । परन्तु अपने' या संस्कृत-प्राकृत से आए हुए शब्दों में ‘ज ज्यों का त्यों रहता है । “जद' कर झदों नहीं होता । यदा>जद-जद ।। | सकता, जाता, सुनता आदि के ‘तो’ को ‘दा हो जाता है |----‘अ है' फा भूतकाल में कहीं” “अहा ( ‘था के लिए) अवघी में प्रयोग मिलता है, जो पंजाबी में भी देखा जाता है अस्या अहा राखश जेड़ा खबर लेके, | श्रोही उठ के फिर समझाने लगा । लैके उठके ब्रजभाषा-पद्धति पर पूर्वकालिक क्रियाएँ हैं । रावण से राक्षस कहता हैदेवाँ बीत सुणा महाराज सूची, । तुस्साँ होवना नहिं खफा चाहिए। नहिं बक्री अप दी नाल उस दे, मैरी मुफ कर देनी रखता चाहिए। जद को तीर चलाउँदा नाल गुस्से, लैना समझ एई सच्च सफा चाहिए। निकलने तीर इझार इक तीर विच्च, उस वकत बचाना खुदा चाहिए ! 'चलाउँदा' के इँ’ को ‘ॐ सुम्प्रसारण । व्रज के आवत है' को बँदेलरखण्ड में 'आउत है' हो जाता है। वही सम्प्रसारण' । स्वर की ओर पंजाबी की अधिक प्रवृत्ति है---व-श्रोह, यह-‘एह ।। महाप्राण ‘स्पर्श' वर्गों से ‘अल्पप्राणु' प्रायः उड़ जाते हैं और महाप्राण भत्रि ( है ) बच रहता है। बैठ' का ‘बैह' हो जाता है। ‘लगंगा गजन दरबार दे विच बैइ के–'बैइके'--बैठ कर ।।