पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/६३४

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सम्प्रसारण पंजाबी को इतना प्रिय है कि विदेशी शब्दों में भी वही बात ‘काँ हाल बेश्रोन इक रोझ दा मैं *बयइन' का बेश्रान हो गया है। इसी तरह “लई खिचे तलवार मेने विचों, । | ‘ले एह वैख' तलवार दिखला कैहँदा "देख' की जगह पंजाबी में 'वेख' धातु है--‘वीक्ष' झा विकास । ‘देख' इसी ‘वेख’ को देख कर । हिन्दी ने संस्कृत ‘दृष्ट से देख' बनायो । दृष्ट>दृष>दिख, देख } भाषा में कई वर्ण एके झी जगह दूसरे प्रायः आते रहते हैं। संस्कृत में विसर्गों को स्’ तथा स्’ को विसर्ग होते देखा जाता है। संस्कृत के अतिरिक्त अन्य किसी भाषा में विसर्गों की स्थिति नहीं है । परन्तु विसर्गों का उच्चारण ‘ह' से मिलता-जुलता है। फलतः संसार की भाषाओं में स’ को ‘हे’ और ‘ह’ को ‘स' होते श्राप देख सकते हैं। खड़ी बोली का ‘स' पंजाब में प्रायः '६' हो जाता है। अपने यहाँ भी ‘सु’ को ‘ह' होते देख सकते हैं। ‘दहला’ ‘दहाई अादि मैं 'स' का 'ह' है और ग्यारस ‘बारस' “तेरस' चौदस जैसी जन-प्रचलित तिथियों के नामों में 'इ' को पुनः *स' के रूप में देखा जाता है । संस्कृत में न्’ को ‘चु’ हुआ करता है और चु’ को ‘कृ’ हुआ करता है। पंजाबी में 'च’ को ‘त होते देखा जाता है : लेझा रथ उड़ा इवा वाँगों, पौंहता जंगल इक जा प्यारे ।। करदा जित्थे सी तप मरीच बैह के, उसे जा पेपौंहचे श्री प्यारे । एक जगह पौंहता है और दूसरी जगह ‘पौंचे' है। यानी खड़ी बोली' के 'च' को बैकल्पिक ‘त' ।। “बाँग’ अव्यय है सादृश्यर्थिक । ‘सी’ सहायक क्रिया पंजाबी में तिङन्त है। मरीच जित्थे तप करदा सी-मारीच जहाँ तप करता था---( कर रहा था ) 1 ‘मरीच' की जगह कोई स्त्रीलिङ्ग कर्ता दे दें, तो भी 'सी' में कोई परिवर्तन न हो गा--'ताड़का जित्थे बैह के तप करदी सी’--ताड़का जिस जगह बैठ कर तप करती थी—कर रही थी। यानी ‘ताड़का' के अनुसार करदी' तो स्त्रीलिङ्ग; पर सहथिक क्रिया ‘सी’ ज्यों की त्यों । करदा' कृदन्त और 'सी' तिङन्त । यह ‘सी’ संस्कृत फी आसीत्' का मध्य अंश है। बहुवचन में सून' होता है, जो आसन्’ को अन्त्य अंश है। ‘न्’ ‘न’ कर लिया गया |