पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/६४

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तो, यह संस्कृत ( तथा उपलब्ध प्राकृत } से एकदम उलट पद्धति है। न ? यह पद्धति प्राकृत के किस रूप से अई ? खड़ी बोली” के क्षेत्र में जो जनभाषा व्यवहृत होती होगी, उसी की यह पद्धति हो सकती है ।। | उत्तर प्रदेश के ‘अवध' तथा 'बैसवाड़े आदि में उक्त उद्धति के विरुद्ध वृद्ध से पु० “बूढ़' और स्त्री ‘बूढ़ा रूप सुने जाते हैं । “बूढ़ मई- “बूढ़ा फहति रहै । वहाँ बैंस कोई प्राकृत रही होगी। राष्ट्रभाषा में बुड्ढा’ पुं० और ‘बुड्ढी' स्त्री० रूप होते हैं । बूढ' में ‘इया' स्त्री-प्रत्यय लगा कर ‘बुढ़िया' भी राष्ट्रभाषा से वजा लिया है। तुलसी ने बूढ़' में राष्ट्रभाषा ६ पुंबिभक्ति लगा कर पुं० “बूढ़ा प्रयोग किया है-जामवन्त मंत्री अति बूढ़ा । परन्तु राष्ट्रभाषा में “बूढ़ा' पुं० नहीं चलता, ‘बुढा' चलता है । यह इसलिए कि पूर्व क्षेत्रों को स्त्रीत्व का भ्रम न हो।" खड़ी बोली में जहाँ ‘अ’ पुंविभक्ति लगती है, ठीक वहीं और उसी पद्धति पर ब्रजभाषा में *' विभक्ति लगती है;-पुलिंग एकवचन में-मीठो, बूढो, गयो, श्राय आदि । बहुवचन में वह श्रो’ भी ‘ए’ बन जाता है और स्त्रीलिंग में ई . “मीठे फल खाए' - मीठी लगी मोहिं बंसी-धुनि । 'क' आदि विभक्तियाँ परे हों, तो यह ‘' एकवचने में भी 2' के रूप में हो जाती है - “मीठे सुर में कोयल चोली' । हाँ, वर्तमान काल की क्रिया में

  • ब्रजभाषा ‘ो' विभक्ति का प्रयोग नहीं करती - जात उड्यो खग एक ।

राष्ट्रभाषा में जाता हैं' होता ही है। बस, यही इतना खड़ी बोली’ की ‘अ’ तथा ब्रज की ‘अ’ विभक्ति में प्रयोग-भेद हैं । यह “श्री विभक्ति प्राकृत से अाई है। वहाँ विसर्गों को *' बना लिया गया है । इस चीज को न समझ कर मीठा' - मीठों आदि को लोगों ने मूलतः अकारान्त-कारान्त समझ लिया है । ‘ओ’ विभक्ति साहित्य-दृष्ट प्राकृत से आई है और राज- स्थानी तथा गुजराती श्रादि में भी यही है। सच बात तो यह है कि ? का प्रयोग राजस्थानी आदि में ही प्राकृत का अनुगसन पूर्णतः करता है; ब्रजभाषा में वैसा नहीं । ब्रजभाषा ‘खड़ी बोली तथा राजानी के बीच में पड़ती है; इसलिए दोनों से प्रभावित है दोनों का ही इस मीठी भाषा { ब्रजभाषा } में मिश्रण हैं । हम इसे ब्रजभाषा और राजस्थानी शीर्षक से एक परिशिष्ट में स्पष्ट करेंगे । मागधी प्राकृत में प्रथमा-एकवचन शोकान्त नहीं, एकारान्त होता है। और स’ को ‘श हो जाता है। ‘सो' की जगह से चेलता है । यह ‘ए’