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पूरब में जे“के' (‘जो’ को ) श्रादि के रूप में भी चलता है; परन्तु

  • मीठा'-...मीठो की तरह विशेषणों में लग कर मीठे जैसे रूप नहीं होते।

सः' के विसर्गों का रूप किसी प्राकृत में उ’ के रूप में भी कभी चलता होगा; जो कि प्राकृत-साहित्य में नहीं दिखाई देता | कविता में कहीं-कहीं ‘जु’ ‘सु' आदि रूप ( जो सो' के } दिखाई देते हैं, उनसे कुछ आभास मिलता है । “बुद्ध 'कल्लू मटरू' आदि में वही दीधे रूप में दिखाई देता है। 'अबधी में इस पुंविभक्ति के दर्शन होते हैं—अचरजु एकु' झादि । अवध तथा बैसवाड़े की जन-भाषाओं में आज भी इसे किसी न किसी रूप में जहाँ-तहाँ श्राप स्पष्ट सुन सकते हैं । हाँ, क्रियाओं में इसका प्रयोग नहीं होता ! देखें तौ सही' में बात दूसरी है, म० पु० का प्रत्यय है । (हाँ, ब्रज में ‘जातु हैं' सुन पड़ता है । } *अचरजु' एॐ दीख’ ‘जु जाडु बहुतु है कारनु कवन इत्यादि प्रयोग होते हैं। बहुवचन से या स्त्रीलिंग में यह नहीं दिखाई देता । रास' आदि शब्दों में इसका प्रयोग प्रामादिफ है, तुलसी-कृत नहीं । 'उ' का प्रयोग कह होता है, कहाँ नहीं, इसका विवेचन कुहीं न होने से लोग अब तक बड़े घपले में हैं और शुद्ध अवधी' की धुन में वे तुलसी के ‘राम’ को ‘रामु’ और ‘भरत’ की ‘भरतु, कर देते हैं ! व्यक्ति- बाचक शब्दों के रूपान्तर में भी 'उ' झरना ठीक नहीं, जब कि वे बड़े लोगों के नाम हों । 'लखन' का 'लखनु तथा बसिष्ठ' को “बसिष्ठु' कर देना बहुत भदा। आदर के लिए बहुवचन अाता है और तब एकत्व-सूचक वह

  • वहाँ लगाना बहुत भद्दा ! खड़ी बोली में भी अादर में बहुवचन

होता है। इसलिए रासु' लखनु वसिष्ठु' श्रादि प्रयोग ठीक नहीं । समझे-बूझे बिना तुलसी के ‘म’ को ‘रामु' कर दिया गया है । इसी तरह

  • शुद्ध' ऋजभाषा बनाने के लिए कुछ प्रसिद्ध कवियों ने कुछ दिन पहले,

सर्वत्र औ’ का प्रयोग शुरू कर दिया था—'यो' को “गयौ’ और ‘अयो’ को “श्चय ही नहीं, राम सो’ को ‘राम-सौ’ भी उनकी कृतियों में आप देख सकते हैं ! यह कृत्रिम ककटुता ‘शुद्ध' ब्रजभाषा लिखने के लिए पैदा की गई ! ब्रजभाषा में 'रै’ ‘परै प्रयोग होते हैं, जबकि खड़ी बोली में ‘क’ ‘पड़े रूप में ! इन करै’-परै रूपों को ध्यान में रख कर किसी पाश्चात्य हिन्दी-विवेचक ने कहीं लिख दिया कि ब्रज की प्रवृत्ति दीर्धाभिमुख हैं। उस विवेचन को पढ़ कर ब्रजभूषा बढी जाने लगी--‘कियौ, गयौ, राम-सौं’ श्रादि । इस तरह ‘म’ को ‘रामु’ बनाया गया, “अवघी' गढ़ने के लिए ! छोटे को ‘रामु बः रामू' कहा जा सकता है, कौशल्या कह सकती है, शिशु